जाम Poetry (page 26)

जिगर के टुकड़े हुए जल के दिल कबाब हुआ

ज़फ़र

जब कि पहलू में हमारे बुत-ए-ख़ुद-काम न हो

ज़फ़र

ज़रूरतों की हमाहमी में जो राह चलते भी टोकती है वो शाइ'री है

बद्र-ए-आलम ख़लिश

जले हैं दिल न चराग़ों ने रौशनी की है

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

आतिश-ए-इश्क़ जब जलाती है

बाबर रहमान शाह

तुम को मैं जब सलाम करता हूँ

बाबर रहमान शाह

मुझे तक़्सीम कर दो

अज़रा अब्बास

ये हम पर लुत्फ़ कैसा ये करम क्या

अज़ीज़ वारसी

ज़िंदगी यूँ तो गुज़र जाती है आराम के साथ

अज़ीज़ तमन्नाई

करते रहे तआ'क़ुब-ए-अय्याम उम्र-भर

अज़ीज़ तमन्नाई

कावाक

अज़ीज़ क़ैसी

कंफ़ेशन

अज़ीज़ क़ैसी

उस की सोचें और उस की गुफ़्तुगू मेरी तरह

अज़ीज़ नबील

कर चुके बर्बाद दिल को फ़िक्र क्या अंजाम की

अज़ीज़ लखनवी

चश्म-ए-साक़ी का तसव्वुर बज़्म में काम आ गया

अज़ीज़ लखनवी

उठाईं हिज्र की शब दिल ने आफ़तें क्या क्या

अज़ीज़ हैदराबादी

ज़हर का जाम ही दे ज़हर भी है आब-ए-हयात

अज़ीज़ हामिद मदनी

तल्ख़-तर और ज़रा बादा-ए-साफ़ी साक़ी

अज़ीज़ हामिद मदनी

मिरी आँखें गवाह-ए-तल'अत-ए-आतिश हुईं जल कर

अज़ीज़ हामिद मदनी

हिकायत-ए-हुस्न-ए-यार लिखना हदीस-ए-मीना-ओ-जाम कहना

अज़ीज़ हामिद मदनी

ऐ शहर-ए-ख़िरद की ताज़ा हवा वहशत का कोई इनआम चले

अज़ीज़ हामिद मदनी

घुट घुट कर मर जाना भी

अज़ीज़ अन्सारी

जफ़ाओं की नुमाइश है किसी से कुछ नहीं बोलें

अज़हर हाश्मी

हमारी आँख में ठहरा हुआ समुंदर था

आज़ाद गुलाटी

दरमियान-ए-गुनाह-ओ-सवाब आदमी

आतिफ़ ख़ान

किसे दिमाग़ कि उलझे तिलिस्म-ए-ज़ात के साथ

अताउर्रहमान क़ाज़ी

इस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में इस अंजुमन-ए-इरफ़ानी में

असरार-उल-हक़ मजाज़

साक़ी

असरार-उल-हक़ मजाज़

नूरा

असरार-उल-हक़ मजाज़

इंक़लाब

असरार-उल-हक़ मजाज़

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