जाम Poetry (page 24)

मोहब्बत में आराम सब चाहते हैं

दाग़ देहलवी

हाथ निकले अपने दोनों काम के

दाग़ देहलवी

दिल-ए-नाकाम के हैं काम ख़राब

दाग़ देहलवी

चेहरे पे नूर-ए-सुब्ह सियह गेसुओं में रात

दाएम ग़व्वासी

नज़रों के गिर्द यूँ तो कोई दायरा न था

डी. राज कँवल

खुलती है चाँदनी जहाँ वो कोई बाम और है

डी. राज कँवल

दुनिया में दिल लगा के बहुत सोचते रहे

डी. राज कँवल

फ़ज़ा-ए-ना-उमीदी में उमीद-अफ़ज़ा पयाम आया

चरख़ चिन्योटी

फ़ज़ा में कैफ़-फ़शाँ फिर सहाब है साक़ी

चरख़ चिन्योटी

बे-ख़ुदी में है न वो पी कर सँभल जाने में है

चरख़ चिन्योटी

देते हैं मेरे जाम में देखें शराब कब

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

ख़ाक-ए-हिंद

चकबस्त ब्रिज नारायण

दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-ईमाँ होना

चकबस्त ब्रिज नारायण

आठ पहर है ये ही ग़म

बुध प्रकाश गुप्ता जौहर देवबंद

क्या करें जाम-ओ-सुबू हाथ पकड़ लेते हैं

बिस्मिल अज़ीमाबादी

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

बिस्मिल अज़ीमाबादी

अब मुलाक़ात कहाँ शीशे से पैमाने से

बिस्मिल अज़ीमाबादी

आज़ार-ओ-जफ़ा-ए-पैहम से उल्फ़त में जिन्हें आराम नहीं

बिस्मिल इलाहाबादी

गले मुझ को लगा लो ऐ मिरे दिलदार होली में

भारतेंदु हरिश्चंद्र

लाख टकराते फिरें हम सर दर-ओ-दीवार से

भारत भूषण पन्त

मुँह में वाइज़ के भी भर आता है पानी अक्सर

बेख़ुद देहलवी

उठे तिरी महफ़िल से तो किस काम के उठ्ठे

बेख़ुद देहलवी

सब्र आता है जुदाई में न ख़्वाब आता है

बेख़ुद देहलवी

झूट सच आप तो इल्ज़ाम दिए जाते हैं

बेख़ुद देहलवी

उदास काग़ज़ी मौसम में रंग ओ बू रख दे

बेकल उत्साही

यूँ तो जो चाहे यहाँ साहब-ए-महफ़िल हो जाए

बहज़ाद लखनवी

मसरूर भी हूँ ख़ुश भी हूँ लेकिन ख़ुशी नहीं

बहज़ाद लखनवी

तूर वाले तिरी तनवीर लिए बैठे हैं

बेदम शाह वारसी

न तो अपने घर में क़रार है न तिरी गली में क़याम है

बेदम शाह वारसी

कौन सा घर है कि ऐ जाँ नहीं काशाना तिरा और जल्वा-ख़ाना तिरा

बेदम शाह वारसी

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