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Collection: जगह Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 18 - Darsaal

जगह Poetry (page 18)

क़रार पाते हैं आख़िर हम अपनी अपनी जगह

बासिर सुल्तान काज़मी

कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ

बशीर बद्र

जब सहर चुप हो हँसा लो हम को

बशीर बद्र

क्या क्या लोग ख़ुशी से अपनी बिकने पर तय्यार हुए

बशर नवाज़

रह-रवाँ कहते हैं जिस को जरस-ए-महमिल है

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

ये किस जगह पे क़दम रुक गए हैं क्या कहिए

बाक़र मेहदी

टूटे शीशे की आख़िरी नज़्म

बाक़र मेहदी

जो ज़माने का हम-ज़बाँ न रहा

बाक़र मेहदी

चराग़-ए-हसरत-ओ-अरमाँ बुझा के बैठे हैं

बाक़र मेहदी

दीदा-ए-बे-रंग में ख़ूँ-रंग मंज़र रख दिए

बख़्श लाइलपूरी

यार को हम ने बरमला देखा

बहराम जी

बहस क्यूँ है काफ़िर-ओ-दीं-दार की

बहराम जी

कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें

ज़फ़र

याँ ख़ाक का बिस्तर है गले में कफ़नी है

ज़फ़र

लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में

ज़फ़र

हम ने तिरी ख़ातिर से दिल-ए-ज़ार भी छोड़ा

ज़फ़र

गुम-शुदा मौसम का आँखों में कोई सपना सा था

बदनाम नज़र

हम ने आप के ग़म को हम-सफ़र बनाया है

बदर जमाली

लफ़्ज़ों के खेल

अज़रा अब्बास

सफ़र के ब'अद भी सफ़र का एहतिमाम कर रहा हूँ मैं

अज़लान शाह

कमाँ न तीर न तलवार अपनी होती है

अज़लान शाह

हर जगह आप ने मुम्ताज़ बनाया है मुझे

अज़ीज़ वारसी

रफ़्तगाँ

अज़ीज़ क़ैसी

मैं वफ़ा का सौदागर

अज़ीज़ क़ैसी

आख़िरी दिन से पहले

अज़ीज़ क़ैसी

ज़ंजीर-ए-पा से आहन-ए-शमशीर है तलब

अज़ीज़ हामिद मदनी

निकल आया हूँ आगे उस जगह से

अज़हर अदीब

कर्ब हरे मौसम का तब तक सहना पड़ता है

आज़ाद गुलाटी

उतरन पहनोगे

अय्यूब ख़ावर

तिलिस्म-ए-इस्म-ए-मोहब्बत है दरपय-ए-दर-ए-दिल

अय्यूब ख़ावर

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