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Collection: प्रेम Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 98 - Darsaal

प्रेम Poetry (page 98)

मेरे हवास-ए-इश्क़ में क्या कम हैं मुंतशिर

अकबर इलाहाबादी

हल्क़े नहीं हैं ज़ुल्फ़ के हल्क़े हैं जाल के

अकबर इलाहाबादी

ग़म्ज़ा नहीं होता कि इशारा नहीं होता

अकबर इलाहाबादी

फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहीं

अकबर इलाहाबादी

अपने पहलू से वो ग़ैरों को उठा ही न सके

अकबर इलाहाबादी

किया है मैं ने तआ'क़ुब वो सुब्ह-ओ-शाम अपना

अकबर अली खान अर्शी जादह

वही बे-बाकी-ए-उश्शाक़ है दरकार अब भी

अजमल सिराज

किसी की क़ैद से आज़ाद हो के रह गए हैं

अजमल सिराज

जो कल हैरान थे उन को परेशाँ कर के छोड़ूँगा

अजमल सिराज

घूम-फिर कर इसी कूचे की तरफ़ आएँगे

अजमल सिराज

न नज़र से कोई गुज़र सका न ही दिल से मलबा हटा सका

अजमल सिद्दीक़ी

इतराता गरेबाँ पर था बहुत, रह-ए-इश्क़ में कब का चाक हुआ

अजमल सिद्दीक़ी

दुखे दिलों पे जो पड़ जाए वो तबीब नज़र

अजमल सिद्दीक़ी

मौजूद हैं वो भी बालीं पर अब मौत का टलना मुश्किल है

आजिज़ मातवी

वो जो फूल थे तिरी याद के तह-ए-दस्त-ए-ख़ार चले गए

अजय सहाब

बिखरा हूँ जब मैं ख़ुद यहाँ कोई मुझे गिराए क्यूँ

अजय सहाब

किसी ने दिल के ताक़ पर जला के रख दिया हमें

ऐतबार साजिद

कहा तख़्लीक़-ए-फ़न बोले बहुत दुश्वार तो होगी

ऐतबार साजिद

तू ही इंसाफ़ से कह जिस का ख़फ़ा यार रहे

ऐश देहलवी

मेरा शिकवा तिरी महफ़िल में अदू करते हैं

ऐश देहलवी

कुछ कम नहीं हैं शम्अ से दिल की लगन में हम

ऐश देहलवी

जुरअत ऐ दिल मय ओ मीना है वो ख़ुद-काम भी है

ऐश देहलवी

जिस दिल में तिरी ज़ुल्फ़ का सौदा नहीं होता

ऐश देहलवी

दोस्त जब दिल सा आश्ना ही नहीं

ऐश देहलवी

ज़ुल्मतों में गो ठहरने को ठहर जाते हैं लोग

ऐश बर्नी

सताइश न कीजिए तबर्रा सही

ऐनुद्दीन आज़िम

अब जुनूँ के रत-जगे ख़िरद में आ गए

ऐनुद्दीन आज़िम

यहाँ के रंग बड़े दिल-पज़ीर हुए हैं

ऐन ताबिश

कैसे अफ़्सूँ थे वहाँ कैसे फ़साने थे उधर

ऐन ताबिश

बला की धूप थी मैं जल रहा था

ऐन इरफ़ान

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