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Collection: हुआ Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 97 - Darsaal

हुआ Poetry (page 97)

रंग पर कल था अभी लाला-ए-गुलशन कैसा

रियाज़ ख़ैराबादी

पाया जो तुझे तो खो गए हम

रियाज़ ख़ैराबादी

मुझ को लेना है तिरे रंग-ए-हिना का बोसा

रियाज़ ख़ैराबादी

कोई पूछे न हम से क्या हुआ दिल

रियाज़ ख़ैराबादी

इश्क़ में दिल-लगी सी रहती है

रियाज़ ख़ैराबादी

फ़रियाद-ए-जुनूँ और है बुलबुल की फ़ुग़ाँ और

रियाज़ ख़ैराबादी

दिल ढूँढती है निगह किसी की

रियाज़ ख़ैराबादी

दर खुला सुब्ह को पौ फटते ही मय-ख़ाने का

रियाज़ ख़ैराबादी

बाम पर आए कितनी शान से आज

रियाज़ ख़ैराबादी

अगर उन के लब पर गिला है किसी का

रियाज़ ख़ैराबादी

आप आए तो ख़याल-ए-दिल-ए-नाशाद आया

रियाज़ ख़ैराबादी

उदास उदास थे हम उस को इक ज़माना हुआ

रिन्द साग़री

उदास देख के मुझ को चमन दिखाता है

रिन्द लखनवी

टूटे बुत मस्जिद बनी मिस्मार बुत-ख़ाना हुआ

रिन्द लखनवी

फिर वही कुंज-ए-क़फ़स है वही सय्याद का घर

रिन्द लखनवी

फिर वही कुंज-ए-क़फ़स है वही सय्याद का घर

रिन्द लखनवी

मुज़्दा-बाद ऐ बादा-ख़्वारो दौर-ए-वाइज़ हो चुका

रिन्द लखनवी

ज़माने में वो मह-लक़ा एक है

रिन्द लखनवी

उल्फ़त न करूँगा अब किसी की

रिन्द लखनवी

तू आप को पोशीदा ओ इख़्फ़ा न समझना

रिन्द लखनवी

तोहमत-ए-हसरत-ए-पर्वाज़ न मुझ पर बाँधे

रिन्द लखनवी

तौबा का पास रिंद-ए-मय-आशाम हो चुका

रिन्द लखनवी

सातों फ़लक किए तह-ओ-बाला निकल गया

रिन्द लखनवी

साइलाना उन के दर पर जब मिरा जाना हुआ

रिन्द लखनवी

लाला-रूयों से कब फ़राग़ रहा

रिन्द लखनवी

ख़ामोश दाब-ए-इश्क़ को बुलबुल लिए हुए

रिन्द लखनवी

इक परी का फिर मुझे शैदा किया

रिन्द लखनवी

दिल किस से लगाऊँ कहीं दिलबर नहीं मिलता

रिन्द लखनवी

चलती रही उस कूचे में तलवार हमेशा

रिन्द लखनवी

आज इंकार न फ़रमाइए आप

रिन्द लखनवी

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