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Collection: हुआ Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 79 - Darsaal

हुआ Poetry (page 79)

हम सोज़-ए-दिल बयाँ करें तुम से कहाँ तलक

सरस्वती सरन कैफ़

शायद मिट्टी मुझे फिर पुकारे

सारा शगुफ़्ता

परिंदे की आँख खुल जाती है

सारा शगुफ़्ता

आँखें दो जुडवाँ बहनें

सारा शगुफ़्ता

उस के सुनने के लिए जम'अ हुआ है महशर

साक़िब लखनवी

सोने वालों को क्या ख़बर ऐ हिज्र

साक़िब लखनवी

किस नज़र से आप ने देखा दिल-ए-मजरूह को

साक़िब लखनवी

कहने को मुश्त-ए-पर की असीरी तो थी मगर

साक़िब लखनवी

बू-ए-गुल फूलों में रहती थी मगर रह न सकी

साक़िब लखनवी

बाग़बाँ ने आग दी जब आशियाने को मिरे

साक़िब लखनवी

वस्ल की उम्मीद बढ़ते बढ़ते थक कर रह गई

साक़िब लखनवी

कहाँ तक जफ़ा हुस्न वालों की सहते

साक़िब लखनवी

हिज्र की शब नाला-ए-दिल वो सदा देने लगे

साक़िब लखनवी

ग़श भी आया मिरी पुर्सिश को क़ज़ा भी आई

साक़िब लखनवी

न कर तो ऐ दिल मजबूर आह-ए-ज़ेर-ए-लबी

साक़िब कानपुरी

वही आँखों में और आँखों से पोशीदा भी रहता है

साक़ी फ़ारुक़ी

मेरी आँखों में अनोखे जुर्म की तज्वीज़ थी

साक़ी फ़ारुक़ी

मिरा अकेला ख़ुदा याद आ रहा है मुझे

साक़ी फ़ारुक़ी

एक एक कर के लोग बिछड़ते चले गए

साक़ी फ़ारुक़ी

तौजीह

साक़ी फ़ारुक़ी

शेर-इमदाद-अली का मेडक

साक़ी फ़ारुक़ी

पाम के पेड़ से गुफ़्तुगू

साक़ी फ़ारुक़ी

मुर्दा-ख़ाना

साक़ी फ़ारुक़ी

मुहासरा

साक़ी फ़ारुक़ी

मस्ताना हीजड़ा

साक़ी फ़ारुक़ी

मैं और मैं!

साक़ी फ़ारुक़ी

एक सुअर से

साक़ी फ़ारुक़ी

कैमरा

साक़ी फ़ारुक़ी

यहीं कहीं पे कभी शोला-कार मैं भी था

साक़ी फ़ारुक़ी

वो लोग जो ज़िंदा हैं वो मर जाएँगे इक दिन

साक़ी फ़ारुक़ी

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