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Collection: हुआ Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 78 - Darsaal

हुआ Poetry (page 78)

नज़र भी आया तो ख़ुद से छुपा लिया मैं ने

सरफ़राज़ नवाज़

किसे ख़बर थी कि इस को भी टूट जाना था

सरफ़राज़ नवाज़

सहरा कोई बस्ती कोई दरिया है कि तुम हो

सरफ़राज़ ख़ालिद

सफ़ीना मौज-ए-बला के लिए इशारा था

सरफ़राज़ दानिश

लम्हा लम्हा तजरबा होने लगा

सरफ़राज़ दानिश

इस दौर के मर्दों की जो की शक्ल-शुमारी

सरफ़राज़ शाहिद

शादी के जो अफ़्साने हैं रंगीन बहुत हैं

सरफ़राज़ शाहिद

कुछ लोग रब्त-ए-ख़ास से आगे निकल गए

सरफ़राज़ शाहिद

इश्क़ में कुछ इस सबब से भी है आसानी मुझे

सरफ़राज़ शाहिद

बढ़ती रही हर साल जो तादाद हमारी

सरफ़राज़ शाहिद

जिसे तू ने समझा है ज़िंदगी उसी इंक़लाब का नाम है

सरीर काबिरी

गुज़रा हुआ ज़माना फिर याद आ रहा है

सरदार सोज़

दर-ए-मय-कदा है खुला हुआ सर-ए-चर्ख़ आज घटा भी है

सरदार सोज़

नूर की शाख़ से टूटा हुआ पत्ता हूँ मैं

सरदार सलीम

दिन-ब-दिन सफ़्हा-ए-हस्ती से मिटा जाता हूँ

सरदार सलीम

आज दीवाने का ज़ौक़-ए-दीद पूरा हो गया

सरदार सलीम

ज़ाहिद नमाज़ भूला इधर देख कर तुझे

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

ज़ाहिद मिरी समझ में तो दोनों गुनाह हैं

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

नासेहा आया नसीहत है सुनाने के लिए

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

नाला शब-ए-फ़िराक़ जो कोई निकल गया

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

काली घटा कब आएगी फ़स्ल-ए-बहार में

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

देखा किसी का हम ने न ऐसा सुना दिमाग़

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

ब-जुज़ साया तन-ए-लाग़र को मेरे कोई क्या समझे

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

आ किधर है तू साक़ी-ए-मख़मूर

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

आता रहा हूँ याद मैं उस को तमाम उम्र

सदार आसिफ़

ये ख़ल्क़ सारी हवा मेरे नाम कर देगी

सदार आसिफ़

लफ़्ज़ों का ये ख़ज़ाना तिरे नाम कब हुआ

सदार आसिफ़

हमारी काविश-ए-शेर-ओ-सुख़न बे-कार जाती है

सदार आसिफ़

हम-सफ़र होता कोई तो बाँट लेते दूरियाँ

सरदार अंजुम

कहीं ये तस्कीन-ए-दिल न देखी कहीं ये आराम-ए-जाँ न देखा

सरस्वती सरन कैफ़

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