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Collection: हुआ Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 77 - Darsaal

हुआ Poetry (page 77)

वक़्त के हाथों हिकायात-ए-अना भूल गए

सरवर आलम राज़

सुब्ह होते ही

सरवत हुसैन

पेपर-वेट

सरवत हुसैन

''एक नज़्म कहीं से भी शुरूअ हो सकती है''

सरवत हुसैन

दरख़्त मेरे दोस्त

सरवत हुसैन

बहता हुआ पानी

सरवत हुसैन

वो मेरे सामने मल्बूस क्या बदलने लगा

सरवत हुसैन

थामी हुई है काहकशाँ अपने हाथ से

सरवत हुसैन

पत्थरों में आइना मौजूद है

सरवत हुसैन

जब शाम हुई मैं ने क़दम घर से निकाला

सरवत हुसैन

इक रोज़ मैं भी बाग़-ए-अदन को निकल गया

सरवत हुसैन

आते जाते मौसमों का सिलसिला बाक़ी रहे

सरवर उस्मानी

तेरे लिए ईजाद हुआ था लफ़्ज़ जो है रा'नाई का

सरताज आलम आबिदी

पाते रहे ये फ़ैज़ तिरी बे-रुख़ी से हम

सरताज आलम आबिदी

इस्तिआरे ढूँडता रहता हूँ

सरमद सहबाई

हाँ मेरी महबूबा

सरमद सहबाई

हमारे लिए सुब्ह के होंट पर बद-दुआ' है

सरमद सहबाई

रौशनी रंगों में सिमटा हुआ धोका ही न हो

सरमद सहबाई

मरने का पता दे मिरे जीने का पता दे

सरमद सहबाई

किस शख़्स की तलाश में सर फोड़ती रही

सरमद सहबाई

कौन है किस ने पुकारा है सदा कैसे हुई

सरमद सहबाई

दश्त में है एक नक़्श-ए-रहगुज़र सब से अलग

सरमद सहबाई

बे-दिली में भी दिल बड़ा रखना

सरमद सहबाई

जब तआ'रुफ़ से बे-नियाज़ था मैं

सरफ़राज़ ज़ाहिद

हवा चलती है दम ठहरा हुआ है

सरफ़राज़ ज़ाहिद

तुम्हारे सच की हिफ़ाज़त में यूँ हुआ अक्सर

सरफ़राज़ नवाज़

बदन-सराए में ठहरा हुआ मुसाफ़िर हूँ

सरफ़राज़ नवाज़

यूँ उड़ाती है जो हवा मुझ को

सरफ़राज़ नवाज़

ये मैं ने माना कि पहरा है सख़्त रातों का

सरफ़राज़ नवाज़

तिरे ख़ुलूस के क़िस्से सुना रहा हूँ मैं

सरफ़राज़ नवाज़

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