हुआ Poetry (page 73)
तुम से रुख़्सत-तलब है मिल जाओ
शबनम शकील
सफ़र की आख़िरी मंज़िल के राहबर हम हैं
शबनम शकील
मौसम के पास कोई ख़बर मो'तबर भी हो
शबनम शकील
हम तो गवाह हैं कि ग़लत था लिखा गया
शबनम शकील
हमराह मिरे कोई मुसाफ़िर न चला था
शबनम शकील
हमराह मिरे कोई मुसाफ़िर न चला था
शबनम शकील
गए बरस की यही बात यादगार रही
शबनम शकील
इक बे-नाम सी खोज है दिल को जिस के असर में रहते हैं
शबनम शकील
दूर हुआ इबहाम कहानी ख़त्म हुई
शबनम शकील
चलती रहती है तसलसुल से जुनूँ-ख़ेज़ हवा
शबनम शकील
बे-वजह तहफ़्फ़ुज़ की ज़रूरत भी नहीं है
शबनम शकील
संग-ए-चेहरा-नुमा तो मैं भी हूँ
शबनम रूमानी
पी रहा है ज़िंदगी की धूप कितने प्यार से
शबनम नक़वी
नज़्म
शबनम अशाई
नज़्म
शबनम अशाई
नज़्म
शबनम अशाई
रूह का सितारा
शब्बीर शाहिद
जब ख़िलाफ़-ए-मस्लहत जीने की नौबत आई थी
शब्बीर शाहिद
जब ख़िलाफ़-ए-मस्लहत जीने की नौबत आई थी
शब्बीर शाहिद
मैं रतजगों का सफ़ीर ठहरा था कितनी रातें गुज़ार आया
शब्बीर नकिद
ये अपने आप पे ताज़ीर कर रही हूँ मैं
शबाना यूसुफ़
दूर तक फैला हुआ पानी ही पानी हर तरफ़
शबाब ललित
शब-ए-विसाल थी रौशन फ़ज़ा में बैठा था
शबाब ललित
दूर तक फैला हुआ पानी ही पानी हर तरफ़
शबाब ललित
कभी भूल कर भी न बात की मुझे दिल से ऐसा भुला दिया
शबाब
हब्स तारी है मुसलसल कैसा
शायर लखनवी
इक तबस्सुम से हम ने रोक लिए
शायर लखनवी
वो कहाँ वक़्त कि मोड़ेंगे इनाँ और तरफ़
शानुल हक़ हक़्क़ी
नज़र चुरा गए इज़हार-ए-मुद्दआ से मिरे
शानुल हक़ हक़्क़ी
जहान-ए-दिल में हुए इंक़लाब और ही कुछ
शानुल हक़ हक़्क़ी
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