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Collection: हुआ Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 66 - Darsaal

हुआ Poetry (page 66)

मैं ज़हर रही हर शाम रही

शाहिदा तबस्सुम

जंगलों में बारिशें हैं दूर तक

शाहिदा तबस्सुम

है शर्त क़ीमत-ए-हुनर भी अब तो रब्त-ए-ख़ास पर

शाहिदा तबस्सुम

ठहरा है क़रीब-ए-जान आ कर

शाहिदा हसन

सानेहा हो के रहा चश्म का मुरझा जाना

शाहिदा हसन

सलीक़ा इश्क़ में मेरा बड़े कमाल का था

शाहिदा हसन

कोई सर्द हवा लब-ए-बाम चली

शाहिदा हसन

जब घर ही जुदा जुदा रहेगा

शाहिदा हसन

एहसास तो मुझी पे कर रही है

शाहिदा हसन

चाँद के साथ जल उठी मैं भी

शाहिदा हसन

चाँद के साथ जल उठी मैं भी

शाहिदा हसन

फलों के साथ कहीं घोंसले न गिर जाएँ

शाहिद ज़की

मैं तो ख़ुद बिकने को बाज़ार में आया हुआ हूँ

शाहिद ज़की

अभी तो पहले परों का भी क़र्ज़ है मुझ पर

शाहिद ज़की

ज़र-ए-सरिश्क फ़ज़ा में उछालता हुआ मैं

शाहिद ज़की

ज़ंजीर कट के क्या गिरी आधे सफ़र के बीच

शाहिद ज़की

यूँ तो नहीं कि पहले सहारे बनाए थे

शाहिद ज़की

यूँ मुझे तेरी सदा अपनी तरफ़ खींचती है

शाहिद ज़की

यार भी राह की दीवार समझते हैं मुझे

शाहिद ज़की

तेरी मर्ज़ी के ख़द-ओ-ख़ाल में ढलता हुआ मैं

शाहिद ज़की

जिधर भी देखिए इक रास्ता बना हुआ है

शाहिद ज़की

वही सफ़्फ़ाक हवाओं का सदफ़ बनते हैं

शाहिद मीर

वार हुआ कुछ इतना गहरा पानी का

शाहिद मीर

तारीकियों का हम थे हदफ़ देखते रहे

शाहिद मीर

मीनारों से ऊपर निकला दीवारों से पार हुआ

शाहिद मीर

ख़ौफ़ से अब यूँ न अपने घर का दरवाज़ा लगा

शाहिद मीर

हर इरादा मुज़्महिल हर फ़ैसला कमज़ोर था

शाहिद मीर

रंग बे-रंग हुआ डूब गईं आवाज़ें

शाहिद माहुली

फैला हुआ है जिस्म में तन्हाइयों का ज़हर

शाहिद माहुली

वक़्फ़ा

शाहिद माहुली

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