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Collection: हुआ Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 65 - Darsaal

हुआ Poetry (page 65)

आहट जो सुनाई दी है हिज्र की शब की है

शहरयार

पतंग उड़ाने से पहले

शहराम सर्मदी

किताब गुमराह कर रही है

शहराम सर्मदी

हुवल-इश्क़

शहराम सर्मदी

अभी मैं ये सोच ही रहा था

शहराम सर्मदी

याद की बस्ती का यूँ तो हर मकाँ ख़ाली हुआ

शहराम सर्मदी

रह-ए-वफ़ा में रहे ये निशान-ए-ख़ातिर बस

शहराम सर्मदी

रगों में रात से ये ख़ून सा रवाँ है क्या

शहराम सर्मदी

मुझे तस्लीम बे-चून-ओ-चुरा तू हक़-ब-जानिब था

शहराम सर्मदी

ख़ला सा ठहरा हुआ है ये चार-सू कैसा

शहराम सर्मदी

ग़ुबार-ए-दर्द में राह-ए-नजात ऐसा ही

शहराम सर्मदी

ब-नाम-ए-इश्क़ इक एहसान सा अभी तक है

शहराम सर्मदी

कभी जो मारका ख़्वाबों से रत-जगों का हुआ

शहनाज़ नूर

ज़मीं थम गई है

शहनाज़ नबी

निज़ाम-ए-शम्सी

शहनाज़ नबी

नए युग का ख़्वाब

शहनाज़ नबी

मस्कन

शहनाज़ नबी

अजीब ख़ौफ़ है जज़्बों की बे-लिबासी का

शहनाज़ नबी

वो सामने हों मिरे और नज़र झुकी न रहे

शहनाज़ मुज़म्मिल

मिरी तरह से कहीं ख़ाक छानता होगा

शहनाज़ मुज़म्मिल

''जो भी आवे है वो नज़दीक ही बैठे है तिरे''

शहनवाज़ ज़ैदी

उलझा उस की दीद में

शहनवाज़ ज़ैदी

तेरी तख़्लीक़ तिरा रंग हवाला था मिरा

शहनवाज़ ज़ैदी

सूरज तिरी दहलीज़ में अटका हुआ निकला

शहनवाज़ ज़ैदी

शिकस्त-ए-शीशा-ए-दिल की दवा मैं क्या करता

शहनवाज़ ज़ैदी

पहले जैसा नहीं रहा हूँ

शहनवाज़ ज़ैदी

जब आफ़्ताब से चेहरा छुपा रही थी हवा

शहनवाज़ ज़ैदी

दिल भी दाग़-ए-नक़्श-ए-कुहन से बुझा हुआ था

शहनवाज़ ज़ैदी

आप की आँखों में आँसू देख कर

शाहजहाँ बानो याद

उसे जब भी देखा बहुत ध्यान से

शाहिदा तबस्सुम

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