हुआ Poetry (page 115)
कौन सा तन है कि मिस्ल-ए-रूह इस में तू नहीं
इमाम बख़्श नासिख़
है दिल-ए-सोज़ाँ में तूर उस की तजल्ली-गाह का
इमाम बख़्श नासिख़
आ गया जब से नज़र वो शोख़ हरजाई मुझे
इमाम बख़्श नासिख़
उन के रुख़्सत का वो लम्हा मुझे यूँ लगता है
इमाम अाज़म
टिमटिमाता हुआ मंदिर का दिया हो जैसे
इमाम अाज़म
सूरज की मीज़ान लिए हम, वो थे बर्फ़ की बाट लिए
इमाम अाज़म
'इश्क़ी'-साहिब लिखना है तो कोई नई तहरीर लिखो
इलियास इश्क़ी
गरचे क़लम से कुछ न लिखेंगे मुँह से कुछ नहीं बोलेंगे
इलियास इश्क़ी
ज़ीस्त-मिज़ाजों का नौहा
इलियास बाबर आवान
यार परिंदे!
इलियास बाबर आवान
शाही बदला
इलियास बाबर आवान
स्कैप-इज़्म
इलियास बाबर आवान
मस्जिद-ए-अहमरीं
इलियास बाबर आवान
ये जो तरतीब से बना हुआ मैं
इलियास बाबर आवान
हमारा आइना बे-कार हो गया तो फिर!
इलियास बाबर आवान
मंज़िलों का मैं पता भी दूँगा
इकराम तबस्सुम
नशात-ए-नौ की तलब है न ताज़ा ग़म का जिगर
इकराम आज़म
ले चले हो तो कहीं दूर ही ले जाना मुझे
इकराम आज़म
हर राहत-ए-जाँ लम्हे से उफ़्ताद की ज़िद है
इकराम आज़म
दिल है और ख़ुद नगरी ज़ौक़-ए-दुआ जिस को कहें
इज्तिबा रिज़वी
ले जाए जहाँ चाहे हवा हम को उड़ा कर
इफ़्तिख़ार राग़िब
फिर उठाया जाऊँगा मिट्टी में मिल जाने के बाद
इफ़्तिख़ार राग़िब
अंदाज़-ए-सितम उन का निहायत ही अलग है
इफ़्तिख़ार राग़िब
मैं शीशा क्यूँ न बना आदमी हुआ क्यूँकर
इफ़्तिख़ार नसीम
कटी है उम्र किसी आबदोज़ कश्ती में
इफ़्तिख़ार नसीम
जिस घड़ी आया पलट कर इक मिरा बिछड़ा हुआ
इफ़्तिख़ार नसीम
उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा
इफ़्तिख़ार नसीम
तिरा है काम कमाँ में उसे लगाने तक
इफ़्तिख़ार नसीम
शाम से तन्हा खड़ा हूँ यास का पैकर हूँ मैं
इफ़्तिख़ार नसीम
न जाने कब वो पलट आएँ दर खुला रखना
इफ़्तिख़ार नसीम
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