हुआ Poetry (page 108)
गलियों में आज़ार बहुत हैं घर में जी घबराता है
रईस फ़रोग़
फ़ज़ा मलूल थी मैं ने फ़ज़ा से कुछ न कहा
रईस फ़रोग़
धूप में हम हैं कभी हम छाँव में
रईस फ़रोग़
ये फ़क़त शोरिश-ए-हवा तो नहीं
रईस अमरोहवी
तिरा ख़याल कि ख़्वाबों में जिन से है ख़ुशबू
रईस अमरोहवी
सफ़र में कोई रुकावट नहीं गदा के लिए
रईस अमरोहवी
रक़्साँ है मुंडेर पर कबूतर
रईस अमरोहवी
रक़्साँ है मुंडेर पर कबूतर
रईस अमरोहवी
मुक़र्रेबीन में रम्ज़-आशना कहाँ निकले
रईस अमरोहवी
कहीं से साज़-ए-शिकस्ता की फिर सदा आई
रईस अमरोहवी
हब्स के आलम में महबस की फ़ज़ा भी कम नहीं
रईस अमरोहवी
बुलंद-ओ-पस्त में मंज़िल हमें कहीं न मिली
रईस अमरोहवी
अपने को तलाश कर रहा हूँ
रईस अमरोहवी
अब दिल की ये शक्ल हो गई है
रईस अमरोहवी
वस्ल की रुत हो कि फ़ुर्क़त की फ़ज़ा मुझ से है
राहुल झा
अब के बिखरा तो मैं यकजा नहीं हो पाऊँगा
राहुल झा
दिल उन की याद से जो बहलता चला गया
रहमत इलाही बर्क़ आज़मी
दब गईं मौजें यकायक जोश में आने के बा'द
रहमत इलाही बर्क़ आज़मी
क्या क्या गुमाँ न थे मुझे अपनी उड़ान पर
रहमान ख़ावर
दिल है अपना न अब जिगर दर-पेश
रहमान जामी
आगही जिस मक़ाम पर ठहरी
रहमान जामी
ये अमल मौजा-ए-अन्फ़ास का धोका ही न हो
रहमान हफ़ीज़
शोरिश-ए-पैहम भी है अफ़्सुर्दगी-ए-दिल भी है
राही शहाबी
दिल की बर्बादी के आसार अभी बाक़ी हैं
राही शहाबी
पहचान कम हुई न शनासाई कम हुई
राही कुरैशी
तश्बीब
राही मासूम रज़ा
तन्हाई
राही मासूम रज़ा
तआरुफ़
राही मासूम रज़ा
एक मंज़र
राही मासूम रज़ा
दर्द तन्हाई का
राही मासूम रज़ा
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