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Collection: हुआ Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 105 - Darsaal

हुआ Poetry (page 105)

उदास शाम की यादों भरी सुलगती हवा

राजेन्द्र मनचंदा बानी

थी पाँव में कोई ज़ंजीर बच गए वर्ना

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मिरे वास्ते जाने क्या लाएगी

राजेन्द्र मनचंदा बानी

इस क़दर ख़ाली हुआ बैठा हूँ अपनी ज़ात में

राजेन्द्र मनचंदा बानी

'नून-मीम-राशिद' के इंतिक़ाल पर

राजेन्द्र मनचंदा बानी

न क़ाएल होते हैं न ज़ाइल

राजेन्द्र मनचंदा बानी

ज़माँ मकाँ थे मिरे सामने बिखरते हुए

राजेन्द्र मनचंदा बानी

ये ज़रा सा कुछ और एक-दम बे-हिसाब सा कुछ

राजेन्द्र मनचंदा बानी

वो जिसे अब तक समझता था मैं पत्थर, सामने था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

वो बात बात पे जी भर के बोलने वाला

राजेन्द्र मनचंदा बानी

शफ़क़ शजर मौसमों के ज़ेवर नए नए से

राजेन्द्र मनचंदा बानी

सरसब्ज़ मौसमों का नशा भी मिरे लिए

राजेन्द्र मनचंदा बानी

सैर-ए-शब-ए-ला-मकाँ और मैं

राजेन्द्र मनचंदा बानी

सफ़र है मिरा अपने डर की तरफ़

राजेन्द्र मनचंदा बानी

सद-सौग़ात सकूँ फ़िरदौस सितंबर आ

राजेन्द्र मनचंदा बानी

पैहम मौज-ए-इमकानी में

राजेन्द्र मनचंदा बानी

न मंज़िलें थीं न कुछ दिल में था न सर में था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

न जाने कल हों कहाँ साथ अब हवा के हैं

राजेन्द्र मनचंदा बानी

न हरीफ़ाना मिरे सामने आ मैं क्या हूँ

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मुझ से इक इक क़दम पर बिछड़ता हुआ कौन था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मिरे बदन में पिघलता हुआ सा कुछ तो है

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मेहराब न क़िंदील न असरार न तमसील

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मैं चुप खड़ा था तअल्लुक़ में इख़्तिसार जो था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

ख़ाक ओ ख़ूँ की वुसअतों से बा-ख़बर करती हुई

राजेन्द्र मनचंदा बानी

कहाँ तलाश करूँ अब उफ़ुक़ कहानी का

राजेन्द्र मनचंदा बानी

हमें लपकती हवा पर सवार ले आई

राजेन्द्र मनचंदा बानी

गुज़र रहा हूँ सियह अंधे फ़ासलों से मैं

राजेन्द्र मनचंदा बानी

इक गुल-ए-तर भी शरर से निकला

राजेन्द्र मनचंदा बानी

इक ढेर राख में से शरर चुन रहा हूँ मैं

राजेन्द्र मनचंदा बानी

दिन को दफ़्तर में अकेला शब भरे घर में अकेला

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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