हुआ Poetry (page 101)
ग़फ़लत में कटी उम्र न हुश्यार हुए हम
रासिख़ अज़ीमाबादी
दिल ज़ुल्फ़-ए-बुताँ में है गिरफ़्तार हमारा
रासिख़ अज़ीमाबादी
शुऊर-ए-ज़ीस्त सही ए'तिबार करना भी
रशक खलीली
शहर-ए-ग़फ़लत के मकीं वैसे तो कब जागते हैं
राशिद मुफ़्ती
महफ़िल में तो बस वो सज रहा है
राशिद मुफ़्ती
लोग कि जिन को था बहुत ज़ोम-ए-वजूद शहर में
राशिद मुफ़्ती
अब क्या गिला कि रूह को खिलने नहीं दिया
राशिद मुफ़्ती
ग़ौर करो तो चेहरा चेहरा ओढ़े गहरे गहरे रंग
राशिद मतीन
ये वाक़िआ तो लगे है सुना हुआ सा कुछ
राशिद जमाल फ़ारूक़ी
प्यारा सा ख़्वाब नींद को छू कर गुज़र गया
राशिद जमाल फ़ारूक़ी
ख़मोश झील में गिर्दाब देख लेते हैं
राशिद जमाल फ़ारूक़ी
आँख खुली तो मुझ को ये इदराक हुआ
राशिद हामिदी
मुजरिम है तुम्हारा तो सज़ा क्यूँ नहीं देते
राशिद फ़ज़ली
तेरी आवाज़
राशिद अनवर राशिद
यूँ न बेगाना रहो गीत सुनाती है हवा
राशिद अनवर राशिद
ये सोच कर मैं रुका था कि तू पुकारेगा
राशिद अनवर राशिद
वो और लोग थे जो रास्ते बदलते रहे
राशिद अनवर राशिद
उड़ती रहती थी सदा ख़ित्ता-ए-वीरान में ख़ाक
राशिद अनवर राशिद
सुना कि ख़ूब है उस के दयार का मौसम
राशिद अनवर राशिद
रेत क़ाबिज़ थी बहुत ख़ामोश लगती थी नदी
राशिद अनवर राशिद
क्या कोई याद तिरे दिल को दुखाती है हवा
राशिद अनवर राशिद
शहर से कोई मज़ाफ़ात में आया हुआ था
राशिद अमीन
पत्थर पड़े हुए कहीं रस्ता बना हुआ
राशिद अमीन
तजज़िया
राशिद आज़र
ख़ुद-एहतसाबी
राशिद आज़र
वही तअल्लुक़-ए-ख़ातिर जो बर्क़-ओ-बाद में है
राशिद आज़र
साया था मेरा और मिरे शैदाइयों में था
राशिद आज़र
समझ रहा है तिरी हर ख़ता का हामी मुझे
राशिद आज़र
कम से कम अपना भरम तो नहीं खोया होता
राशिद आज़र
फ़ासला रक्खो ज़रा अपनी मुदारातों के बीच
राशिद आज़र
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