हंगामा Poetry
हर वो हंगामा ना-गहाँ गुज़रा
तिरी निगह से इसे भी गुमाँ हुआ कि मैं हूँ
ज़िया जालंधरी
कोई हंगामा सर-ए-बज़्म उठाया जाए
ज़ेहरा निगाह
शाम का पहला तारा
ज़ेहरा निगाह
कोई हंगामा सर-ए-बज़्म उठाया जाए
ज़ेहरा निगाह
महशरिस्तान-ए-जुनूँ में दिल-ए-नाकाम आया
ज़रीफ़ लखनवी
दिल देख रहे हैं वो जिगर देख रहे हैं
ज़हीर अहमद ताज
सफ़र कठिन ही सही जान से गुज़रना क्या
ज़फ़र इक़बाल
लम्स-ए-तिश्ना-लबी से गुज़री है
यासमीन हबीब
चंद घंटे शोर ओ ग़ुल की ज़िंदगी चारों तरफ़
याक़ूब आमिर
तिरे आशुफ़्ता से क्या हाल-ए-बेताबी बयाँ होगा
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
लगाओ न जब दिल तो फिर क्यूँ लगावट
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
आप अपना रू-ए-ज़ेबा देखिए
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
रहने वालों को तिरे कूचे के ये क्या हो गया
मीर तस्कीन देहलवी
चलो के मिल के बदल देते हैं समाजों को
तासीर सिद्दीक़ी
मिट गए हाए मकीं और मकान-ए-देहली
तफ़ज़्ज़ुल हुसैन ख़ान कौकब देहलवी
मुशाएरा
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
वाइज़-ए-शहर ख़ुदा है मुझे मा'लूम न था
सय्यद आबिद अली आबिद
मुसीबत में भी ग़ैरत-आश्ना ख़ामोश रहती है
सुल्तान अख़्तर
दर-ब-दर की ख़ाक पेशानी पे मल कर आएगा
सुल्तान अख़्तर
इस आलम-ए-वीराँ में क्या अंजुमन-आराई
सूफ़ी तबस्सुम
तुम ने महसूस कहाँ मेरी ज़रूरत की है
सिया सचदेव
क़दम तो रख मंज़िल-ए-वफ़ा में बिसात खोई हुई मिलेगी
सिराज लखनवी
ईमाँ की नुमाइश है सज्दे हैं कि अफ़्साने
सिराज लखनवी
रोज़ ख़ूँ होते हैं दो-चार तिरे कूचे में
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
ज़ाहिरन ये बुत तो हैं नाज़ुक गुल-ए-तर की तरह
शौक़ बहराइची
बंद कर के खिड़कियाँ यूँ रात को बाहर न देख
शमीम हनफ़ी
अपने रोज़ ओ शब का आलम कर्बला से कम नहीं
शहज़ाद क़मर
ये न हो वो भूलने वाला भुला देना पड़े
शहज़ाद अहमद
उम्र जितनी भी कटी उस के भरोसे पे कटी
शहज़ाद अहमद
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