हाल Poetry (page 45)
शोहरत-ए-फ़न बहुत हुई दाद कमाल दे गए
अताउर्रहमान जमील
कहाँ गए शब-ए-महताब के जमाल-ज़दा
अताउर्रहमान जमील
दिलों के दर्द जगा ख़्वाहिशों के ख़्वाब सजा
अता शाद
ख़्वाब की दिल्ली
अता आबिदी
रोएँ न अभी अहल-ए-नज़र हाल पे मेरे
असरार-उल-हक़ मजाज़
शिकवा-ए-मुख़्तसर
असरार-उल-हक़ मजाज़
एक जिला-वतन की वापसी
असरार-उल-हक़ मजाज़
आवारा
असरार-उल-हक़ मजाज़
बर्बाद-ए-तमन्ना पे इताब और ज़ियादा
असरार-उल-हक़ मजाज़
सीना-ए-संग में ढूँढता है गुदाज़
असरारुल हक़ असरार
जानते थे ग़म तिरा दरिया भी था गहरा भी था
असरारुल हक़ असरार
दिल्ली दर्शन
असरार जामई
तू अपने शहर-ए-तरब से न पूछ हाल मिरा
असलम महमूद
मिज़ा पे ख़्वाब नहीं इंतिज़ार सा कुछ है
असलम महमूद
ऐ मिरे ग़ुबार-ए-सर तू ही तो नहीं तन्हा राएगाँ तो मैं भी हूँ
असलम महमूद
हंगामा-ए-हस्ती से गुज़र क्यूँ नहीं जाते
असलम फ़र्रुख़ी
बस एक बार उसे रौशनी में देखा था
असलम आज़ाद
ऐन-मुमकिन है किसी तर्ज़-ए-अदा में आए
असलम अंसारी
ख़ुश्बू जैसी रात ने मेरा
आसिमा ताहिर
हम ने जब हाल-ए-दिल उन से अपना कहा
आसिमा ताहिर
सदियों को बेहाल किया था
आसिमा ताहिर
अपनी हालत पे आँसू बहाने लगे
आसिमा ताहिर
माना किसी ज़ालिम की हिमायत नहीं करते
आसिम वास्ती
क़ासिद तो लिए जाता है पैग़ाम हमारा
आसिफ़ुद्दौला
मिलने को तुझ से दिल तो मिरा बे-क़रार है
आसिफ़ुद्दौला
ज़मीं कहीं है मिरी और आसमान कहीं
अासिफ़ शफ़ी
राह-ए-जुनूँ पे चल परे जीना मुहाल कर लिया
अासिफ़ शफ़ी
सहरा से भी वीराँ मिरा घर है कि नहीं है
अासिफ़ जमाल
निकली वो ज़िंदगी से तो पामाल हो गया
अशरफ़ शाद
अहद-ए-वफ़ा न याद दिलाएँ तो क्या करें
अशरफ़ रफ़ी
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