हाल Poetry (page 39)
लग गए हैं फ़ोन लगने में जो पच्चीस साल
दिलावर फ़िगार
इलिएट्स-गर्ल्स-कॉलेज और कुल पाक ओ हिन्द मुशाएरा
दिलावर फ़िगार
अल्लामा-'इक़बाल' को शिकवा
दिलावर फ़िगार
या रब मिरे नसीब में अक्ल-ए-हलाल हो
दिलावर फ़िगार
वो शख़्स कभी जिस ने मिरा घर नहीं देखा
दिलावर फ़िगार
अजब अख़बार लिक्खा जा रहा है
दिलावर फ़िगार
अजीब रंग अजब हाल में पड़े हुए हैं
दिलावर अली आज़र
क्या जाने किस ख़याल से छोड़ा प हाल-ए-ज़ार
दिल शाहजहाँपुरी
ज़ीस्त बे-वादा-ए-अनवार-ए-सहर है कि जो थी
द्वारका दास शोला
नहीं कहते किसी से हाल-ए-दिल ख़ामोश रहते हैं
द्वारका दास शोला
मिरी बे-क़रारी मिरी आह-ओ-ज़ारी ये वहशत नहीं है तो फिर और क्या है
द्वारका दास शोला
रात
दाऊद ग़ाज़ी
जवाज़
दाऊद ग़ाज़ी
मिरा अहवाल चश्म-ए-यार सूँ पूछ
दाऊद औरंगाबादी
दर्पन दिया हूँ दिल का मैं उस दिलरुबा के हाथ
दाऊद औरंगाबादी
सूरत-ए-हाल अब तो वो नक़्श-ए-ख़याली हो गया
दत्तात्रिया कैफ़ी
तमाम नूर-ए-तजल्ली तमाम रंग-ए-चमन
दर्शन सिंह
कब ख़मोशी को मोहब्बत की ज़बाँ समझा था मैं
दर्शन सिंह
ग़म-ए-हयात पे ख़ंदाँ हैं तेरे दीवाने
दर्शन सिंह
सितम के बा'द भी बाक़ी करम की आस तो है
दानिश फ़राही
नासेह ने मेरा हाल जो मुझ से बयाँ किया
दाग़ देहलवी
दिल का क्या हाल कहूँ सुब्ह को जब उस बुत ने
दाग़ देहलवी
आप पछताएँ नहीं जौर से तौबा न करें
दाग़ देहलवी
उन के इक जाँ-निसार हम भी हैं
दाग़ देहलवी
तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था
दाग़ देहलवी
तुम आईना ही न हर बार देखते जाओ
दाग़ देहलवी
शब-ए-वस्ल ज़िद में बसर हो गई
दाग़ देहलवी
पुकारती है ख़मोशी मिरी फ़ुग़ाँ की तरह
दाग़ देहलवी
मुझ सा न दे ज़माने को परवरदिगार दिल
दाग़ देहलवी
मज़े इश्क़ के कुछ वही जानते हैं
दाग़ देहलवी
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