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Collection: गुलिस्ताँ Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 2 - Darsaal

गुलिस्ताँ Poetry (page 2)

ख़ुनुक-जोशी न करते जूँ सबा गर ये बुताँ हम से

वली उज़लत

गुल रहे नहिं नाम को सरकश हैं ख़ाराँ अल-अयाज़

वली उज़लत

ग़ुंचा-ए-दिल मिरा खा कर गुल-ए-ख़ंदाँ मेरा

वली उज़लत

दर्द जूँ शम्अ' मिले है शब-ए-हिज्राँ मुझ को

वली उज़लत

ऐ यार मुझ अफ़सुर्दा-ए-हिज्राँ को पहुँच तू

वली उज़लत

अगर मैं मोजज़े को ख़ाकसारी के अयाँ करता

वली उज़लत

तुझ लब की सिफ़त लाल-ए-बदख़्शाँ सूँ कहूँगा

वली मोहम्मद वली

नादान होशियार बने जिन के रूप से

वाजिद सहरी

ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

तीर-ए-नज़र ने ज़ुल्म को एहसाँ बना दिया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

शौक़ ने इशरत का सामाँ कर दिया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

मुद्दत हुई है मदह-ए-हसीनाँ किए हुए

वहीदुद्दीन सलीम

मुद्दत हुई है मदह-ए-हसीनाँ किए हुए

वहीदुद्दीन सलीम

गरेबाँ से तिरे किस ने निकाला सुब्ह-ए-ख़ंदाँ को

वहीदुद्दीन सलीम

गरेबाँ से तिरे किस ने निकाला सुब्ह-ए-ख़ंदाँ को

वहीदुद्दीन सलीम

आज़ाद तो बरसों से हैं अरबाब-ए-गुलिस्ताँ

वाहिद प्रेमी

ग़म भी है कैफ़ भी है सोज़ भी है साज़ भी है

वाहिद प्रेमी

रौशन हों दिल के दाग़ तो लब पर फ़ुग़ाँ कहाँ

वहीदा नसीम

मिज़्गाँ पे आज यास के मोती बिखर गए

वहीदा नसीम

हर एक गाम पे सज्दा यहाँ रवा होगा

वहीदा नसीम

कतरा के गुल्सिताँ से जो सू-ए-क़फ़स चले

वहीद अख़्तर

सीने के दाग़ उन को दिखाए न जा सके

वली मदनी

फूल होंटों को ग़ज़ल-ख़्वाँ देखना

तुफ़ैल बिस्मिल

ख़िज़ाँ से पेशतर सारा चमन बर्बाद होता है

तिलोकचंद महरूम

हम जब्र-ए-मोहब्बत से गुरेज़ाँ नहीं होते

तालीफ़ हैदर

दिल वो काफ़िर कि सदा ऐश का सामाँ माँगे

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

तिरे मिज़्गाँ की फ़ौजें बाँध कर सफ़ जब हुईं ख़ड़ियाँ

ताबाँ अब्दुल हई

ख़ूबाँ जो पहनते हैं निपट तंग चोलियाँ

ताबाँ अब्दुल हई

ऐश सब ख़ुश आते हैं जब तलक जवानी है

ताबाँ अब्दुल हई

आई बहार शोरिश-तिफ़लाँ को क्या हुआ

ताबाँ अब्दुल हई

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