गुल Poetry (page 85)

मौजूद हैं वो भी बालीं पर अब मौत का टलना मुश्किल है

आजिज़ मातवी

जहाँ न दिल को सुकून है न है क़रार मुझे

आजिज़ मातवी

जब कभी मद्द-ए-मुक़ाबिल वो रुख़-ए-ज़ेबा हुआ

आजिज़ मातवी

जब मेरा घर बहिश्त सी गुल-वादियों में था

अजीत सिंह हसरत

मिरा है कौन दुश्मन मेरी चाहत कौन रखता है

ऐतबार साजिद

न छोड़ी ग़म ने मिरे इक जिगर में ख़ून की बूँद

ऐश देहलवी

कुछ कम नहीं हैं शम्अ से दिल की लगन में हम

ऐश देहलवी

किसी की नेक हो या बद जहाँ में ख़ू नहीं छुपती

ऐश देहलवी

जो होता आह तिरी आह-ए-बे-असर में असर

ऐश देहलवी

कारोबारी शहरों में ज़ेहन-ओ-दिल मशीनें हैं जिस्म कारख़ाना है

ऐनुद्दीन आज़िम

ज़मीन अपने बेटों को पहचानती है

ऐन ताबिश

रात-भर रोने का दिन था

ऐन इरफ़ान

सो हश्र में लिए दिल-ए-हसरत मआब में

अहसन मारहरवी

जो जो शुऊर-ए-ज़ेहन पे आता चला गया

अहसन लखनवी

दुआ

अहमक़ फफूँदवी

वो ख़्वाब सा पैकर है गुल-ए-तर की तरह है

अहमद ज़िया

उम्र का आख़िरी दिन

अहमद ज़फ़र

हैरत-ख़ाना-ए-इमरोज़

अहमद ज़फ़र

उस ने तोड़ा जहाँ कोई पैमाँ

अहमद ज़फ़र

तरस रहा हूँ क़रार-ए-दिल-ओ-नज़र के लिए

अहमद ज़फ़र

जंगल का सन्नाटा मेरा दुश्मन है

अहमद ज़फ़र

अपनी ही आवाज़ के क़द के बराबर हो गया

अहमद तनवीर

ग़म के बादल हैं ये ढल जाएँगे रफ़्ता रफ़्ता

अहमद शाहिद ख़ाँ

हैं शाख़ शाख़ परेशाँ तमाम घर मेरे

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

ज़िंदगी ग़म की आँच सह कोई

अहमद रियाज़

क्या क्या मोहब्बतों के ज़माने बदल गए

अहमद रियाज़

क्या क्या मोहब्बतों के ज़माने बदल गए

अहमद रियाज़

दर्द-ए-मुश्तरक

अहमद राही

कोई बतलाए कि क्या हैं यारो

अहमद राही

आम है कूचा-ओ-बाज़ार में सरकार की बात

अहमद राही

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