गुल Poetry (page 84)

हयात इंसाँ की सर ता पा ज़बाँ मालूम होती है

अख़्तर अंसारी

अपनी बहार पे हँसने वालो कितने चमन ख़ाशाक हुए

अख़्तर अंसारी

मुझ से मत पूछ मिरा हाल-ए-दरूँ रहने दे

अख़लाक़ बन्दवी

में महफ़िल-ए-हयात में हैरान सा रहा

अख़लाक़ अहमद आहन

ये गुल जिस ख़ाक से लाया गया है

अकबर मासूम

ख़ालिक़ और तख़्लीक़

अकबर हैदराबादी

निगह-ए-शौक़ से हुस्न-ए-गुल-ओ-गुलज़ार तो देख

अकबर हैदराबादी

फ़ित्ने अजब तरह के समन-ज़ार से उठे

अकबर हैदराबादी

दूर तक बस इक धुँदलका गर्द-ए-तन्हाई का था

अकबर हैदराबादी

बदन से रिश्ता-ए-जाँ मो'तबर न था मेरा

अकबर हैदराबादी

अता हुई किसे सनद नज़र नज़र की बात है

अकबर हैदराबादी

हँसी में साग़र-ए-ज़र्रीं खनक खनक जाए

अकबर हमीदी

अभी ज़मीन को हफ़्त आसमाँ बनाना है

अकबर हमीदी

किस चमन की ख़ाक में फूलों का मुस्तक़बिल नहीं

अकबर हैदरी

तश्बीह तिरे चेहरे को क्या दूँ गुल-ए-तर से

अकबर इलाहाबादी

जल्वा न हो मअ'नी का तो सूरत का असर क्या

अकबर इलाहाबादी

नई तहज़ीब

अकबर इलाहाबादी

ख़ुशी है सब को कि ऑपरेशन में ख़ूब निश्तर ये चल रहा है

अकबर इलाहाबादी

ख़त्म किया सबा ने रक़्स गुल पे निसार हो चुकी

अकबर इलाहाबादी

जज़्बा-ए-दिल ने मिरे तासीर दिखलाई तो है

अकबर इलाहाबादी

जल्वा अयाँ है क़ुदरत-ए-परवरदिगार का

अकबर इलाहाबादी

हवा-ए-शब भी है अम्बर-अफ़्शाँ उरूज भी है मह-ए-मुबीं का

अकबर इलाहाबादी

ग़म्ज़ा नहीं होता कि इशारा नहीं होता

अकबर इलाहाबादी

गले लगाएँ करें प्यार तुम को ईद के दिन

अकबर इलाहाबादी

दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ

अकबर इलाहाबादी

दिल-ए-मायूस में वो शोरिशें बरपा नहीं होतीं

अकबर इलाहाबादी

दर्द तो मौजूद है दिल में दवा हो या न हो

अकबर इलाहाबादी

बे-तकल्लुफ़ बोसा-ए-ज़ुल्फ़-ए-चलीपा लीजिए

अकबर इलाहाबादी

खुल के बरसना और बरस कर फिर खुल जाना देखा है

अजमल सिद्दीक़ी

ऐ हुस्न जब से राज़ तिरा पा गए हैं हम

अजमल अजमली

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