गुल Poetry (page 83)

मिरी आँखों से ज़ाहिर ख़ूँ-फ़िशानी अब भी होती है

अख़्तर शीरानी

ला पिला साक़ी शराब-ए-अर्ग़वानी फिर कहाँ

अख़्तर शीरानी

आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या

अख़्तर शीरानी

सैर-गाह-ए-दुनिया का हासिल-ए-तमाशा क्या

अख़्तर सईद ख़ान

कहें किस से हमारा खो गया क्या

अख़्तर सईद ख़ान

आज भी दश्त-ए-बला में नहर पर पहरा रहा

अख़्तर सईद ख़ान

मक़ाम-ए-दिल बहुत ऊँचा बना है

अख़्तर ओरेनवी

कुछ इस तरह के बहारों ने गुल खिलाए हैं

अख़तर मुस्लिमी

नाले मिरे जब तक मिरे काम आते रहेंगे

अख़तर मुस्लिमी

न समझ सकी जो दुनिया ये ज़बान-ए-बे-ज़बानी

अख़तर मुस्लिमी

रौनक़ ही नहीं उस की हम रूह-ओ-रवाँ भी हैं

अख्तर लख़नवी

चमन के रंग-ओ-बू ने इस क़दर धोका दिया मुझ को

अख़्तर होशियारपुरी

यक-ब-यक मौसम की तब्दीली क़यामत ढा गई

अख़्तर होशियारपुरी

तूफ़ान-ए-अब्र-ओ-बाद से हर-सू नमी भी है

अख़्तर होशियारपुरी

शाख़ों पे ज़ख़्म हैं कि शगूफ़े खिले हुए

अख़्तर होशियारपुरी

मिरी निगाह का पैग़ाम बे-सदा जो हुआ

अख़्तर होशियारपुरी

मिरी निगाह का पैग़ाम बे-सदा जो हुआ

अख़्तर होशियारपुरी

मंज़िलों के फ़ासले दीवार-ओ-दर में रह गए

अख़्तर होशियारपुरी

एक हम ही तो नहीं आबला-पा आवारा

अख़्तर होशियारपुरी

बारहा ठिठका हूँ ख़ुद भी अपना साया देख कर

अख़्तर होशियारपुरी

नफ़रतों से चेहरा चेहरा गर्द था

अख़्तर फ़िरोज़

यूँ बदलती है कहीं बर्क़-ओ-शरर की सूरत

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

सहारा दे नहीं सकते शिकस्ता पाँव को

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

रहने दे ये तंज़ के नश्तर अहल-ए-जुनूँ बेबाक नहीं

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

नज़र से सफ़्हा-ए-आलम पे ख़ूनीं दास्ताँ लिखिए

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

मिला के क़तरा-ए-शबनम में रंग ओ निकहत-ए-गुल

अख़्तर अंसारी

तिरा आसमाँ नावकों का ख़ज़ीना हयात-आफ़रीना हयात-आफ़रीना

अख़्तर अंसारी

फूल सूँघे जाने क्या याद आ गया

अख़्तर अंसारी

लुत्फ़ ले ले के पिए हैं क़दह-ए-ग़म क्या क्या

अख़्तर अंसारी

ख़िज़ाँ में आग लगाओ बहार के दिन हैं

अख़्तर अंसारी

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