गुल Poetry (page 80)

इबलीस की मजलिस-ए-शूरा

अल्लामा इक़बाल

हिमाला

अल्लामा इक़बाल

एक आरज़ू

अल्लामा इक़बाल

ज़मीर-ए-लाला मय-ए-लाल से हुआ लबरेज़

अल्लामा इक़बाल

या रब ये जहान-ए-गुज़राँ ख़ूब है लेकिन

अल्लामा इक़बाल

फिर चराग़-ए-लाला से रौशन हुए कोह ओ दमन

अल्लामा इक़बाल

न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए

अल्लामा इक़बाल

मिटा दिया मिरे साक़ी ने आलम-ए-मन-ओ-तू

अल्लामा इक़बाल

कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करे

अल्लामा इक़बाल

कमाल-ए-तर्क नहीं आब-ओ-गिल से महजूरी

अल्लामा इक़बाल

इश्क़ से पैदा नवा-ए-ज़िंदगी में ज़ेर-ओ-बम

अल्लामा इक़बाल

गर्म-ए-फ़ुग़ाँ है जरस उठ कि गया क़ाफ़िला

अल्लामा इक़बाल

फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर

अल्लामा इक़बाल

दिगर-गूँ है जहाँ तारों की गर्दिश तेज़ है साक़ी

अल्लामा इक़बाल

असर करे न करे सुन तो ले मिरी फ़रियाद

अल्लामा इक़बाल

अपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा था मैं

अल्लामा इक़बाल

एहसास देख पाए वो मंज़र तलाश कर

अलीउद्दीन नवेद

नको नसीहत करो अज़ीज़ाँ निगा है हमना मुहन सूँ मीता

अलीमुल्लाह

इलाही बुलबुल-ए-गुलज़ार-मअनी कर लिसाँ मेरा

अलीमुल्लाह

हुस्न का देख हर तरफ़ गुलज़ार

अलीमुल्लाह

ग़फ़लत में सोया अब तिलक फिर होवेगा होश्यार कब

अलीमुल्लाह

दिलबर को दिलबरी सूँ मना यार कर रखूँ

अलीमुल्लाह

'बहरी' पछाने नीं उसे गुल के सो वो दम-साज़ थे

अलीमुल्लाह

अक़्ल-ए-जुज़वी छोड़ कर ऐ यार फ़िक्र-ए-कुल करो

अलीमुल्लाह

अजब चंचल मिला है यार हमना

अलीमुल्लाह

उर्दू

अली सरदार जाफ़री

तुम्हारा शहर

अली सरदार जाफ़री

तुम नहीं आए थे जब

अली सरदार जाफ़री

तीन शराबी

अली सरदार जाफ़री

ताशक़ंद की शाम

अली सरदार जाफ़री

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