गुल Poetry (page 79)
बुरीदा बाज़ुओं में वो परिंद लाला-बार था
अम्बर बहराईची
आज फिर धूप की शिद्दत ने बड़ा काम किया
अम्बर बहराईची
फिर कोई मुश्किल जवाँ होने को है
अमर सिंह फ़िगार
मजबूरियों में बाँट ले जो दर्द कौन है
अमर सिंह फ़िगार
रूह को राह-ए-अदम में मिरा तन याद आया
अमानत लखनवी
रवाँ दवाँ नहीं याँ अश्क चश्म-ए-तर की तरह
अमानत लखनवी
लुत्फ़ अब ज़ीस्त का ऐ गर्दिश-ए-अय्याम नहीं
अमानत लखनवी
ख़ाना-ए-ज़ंजीर का पाबंद रहता हूँ सदा
अमानत लखनवी
हैं जल्वा-ए-तन से दर-ओ-दीवार बसंती
अमानत लखनवी
दिखलाए ख़ुदा उस सितम-ईजाद की सूरत
अमानत लखनवी
समुंदरों को उठाए फिरी घटा बरसों
अल्ताफ़ परवाज़
कौन उतरा नज़र के ज़ीने से
अल्ताफ़ मशहदी
मर्सिया-ए-देहली-ए-मरहूम
अल्ताफ़ हुसैन हाली
उस के जाते ही ये क्या हो गई घर की सूरत
अल्ताफ़ हुसैन हाली
कब्क ओ क़ुमरी में है झगड़ा कि चमन किस का है
अल्ताफ़ हुसैन हाली
गो जवानी में थी कज-राई बहुत
अल्ताफ़ हुसैन हाली
बुरी और भली सब गुज़र जाएगी
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ज़ख़्म दिल का ख़ूँ-चकाँ ऐसा न था
अलक़मा शिबली
जुनून-ए-शौक़-ए-मोहब्बत की आगही देना
अलक़मा शिबली
सब्ज़ है पैरहन चाँद का आज फिर
आलोक यादव
जो भी सूखे गुल किताबों में मिले अच्छे लगे
आलोक यादव
उन की आमद है गुल-फ़िशानी है
आलोक मिश्रा
बुझे लबों पे तबस्सुम के गुल सजाता हुआ
आलोक मिश्रा
शुआ-ए-उम्मीद
अल्लामा इक़बाल
रूह-ए-अर्ज़ी आदम का इस्तिक़बाल करती है
अल्लामा इक़बाल
मिर्ज़ा 'ग़ालिब'
अल्लामा इक़बाल
मार्च 1907
अल्लामा इक़बाल
ला-इलाहा-इल्लल्लाह
अल्लामा इक़बाल
जावेद के नाम
अल्लामा इक़बाल
इल्तिजा-ए-मुसाफ़िर
अल्लामा इक़बाल
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