गुल Poetry (page 76)

नैरंगी-ए-बहार-ओ-ख़िज़ाँ देखते रहे

अर्श मलसियानी

तह-ए-अफ़्लाक ही सब कुछ नहीं है

अरमान नज्मी

दिल क्या किसी की बात से अंदर से कट गया

आरिफ़ अंसारी

बाग़बाँ की बे-रुख़ी से नीले-पीले हो गए

आरिफ़ अंसारी

वो कारवान-ए-बहाराँ कि बे-दरा होगा

आरिफ़ अब्दुल मतीन

मैं अज़ल का राह-रौ मुझ को अबद की जुस्तुजू

आरिफ़ अब्दुल मतीन

जो उभरे वक़्त के साँचे में ढल के

आरिफ़ अब्दुल मतीन

छुपाए दिल में हम अक्सर तिरी तलब भी चले

आरिफ़ अब्दुल मतीन

अब तिरे हिज्र में यूँ उम्र बसर होती है

अनवापुल हसन अनवार

यादों के बाग़ से वो हरा-पन नहीं गया

अनवर शऊर

सुलैमान-ए-सुख़न तो ख़ैर क्या हूँ

अनवर शऊर

रंगीं बना के दामन-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर को मैं

अनवर सहारनपुरी

जब फ़स्ल-ए-बहाराँ आती है शादाब गुलिस्ताँ होते हैं

अनवर सहारनपुरी

तलाश जिस को मैं करता फिरा ख़राबों में

अनवर सदीद

अपने दिल की आदत है शहज़ादों वाली

अनवर सदीद

आरज़ू ने जिस की पोरों तक था सहलाया मुझे

अनवर सदीद

ज़िंदगी के हसीं बहाने से

अनवर साबरी

वो नीची निगाहें वो हया याद रहेगी

अनवर साबरी

शब-ए-फ़िराक़ की ज़ुल्मत है ना-गवार मुझे

अनवर साबरी

निगाह-ओ-दिल से गुज़री दास्ताँ तक बात जा पहुँची

अनवर साबरी

न होंगे हम तो ये रंग-ए-गुलिस्ताँ कौन देखेगा

अनवर साबरी

लब पे काँटों के है फ़रियाद-ओ-बुका मेरे बाद

अनवर साबरी

इंक़िलाब-ए-सहर-ओ-शाम इलाही तौबा

अनवर साबरी

रुख़ से पर्दा उठा दे ज़रा साक़िया बस अभी रंग-ए-महफ़िल बदल जाएगा

अनवर मिर्ज़ापुरी

उसे तो पास-ए-ख़ुलूस-ए-वफ़ा ज़रा भी नहीं

अनवर मसूद

हो रहा है टुकड़े टुकड़े दिल मेरे ग़म-ख़्वार का

अनवर देहलवी

अश्क बेताब व निगह बे-बाक व चश्म-ए-तर ख़राब

अनवर देहलवी

हमें भूला नहीं अफ़्साना दिल का

अनवर मोअज़्ज़म

डूबते तारों से पूछो न क़मर से पूछो

अनवर मोअज़्ज़म

दीदा-ए-तर ने अजब जल्वागरी देखी है

अनवर मोअज़्ज़म

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