गुल Poetry (page 75)

जब हुआ गर्म-ए-कलाम-ए-मुख़्तसर महका दिया

अरशद अली ख़ान क़लक़

गुलगश्त-ए-बाग़ को जो गया वो गुल-ए-फ़रंग

अरशद अली ख़ान क़लक़

तासीर जज़्ब मस्तों की हर हर ग़ज़ल में है

अरशद अली ख़ान क़लक़

सितम वो तुम ने किए भूले हम गिला दिल का

अरशद अली ख़ान क़लक़

शरफ़ इंसान को कब ज़िल्ल-ए-हुमा देता है

अरशद अली ख़ान क़लक़

सैर करते उसे देखा है जो बाज़ारों में

अरशद अली ख़ान क़लक़

रोज़-ए-अव्वल से असीर ऐ दिल-ए-नाशाद हैं हम

अरशद अली ख़ान क़लक़

रग-ओ-पै में भरा है मेरे शोर उस की मोहब्बत का

अरशद अली ख़ान क़लक़

परतव-ए-रुख़ का तिरे दिल में गुज़र रहता है

अरशद अली ख़ान क़लक़

नहीं चमके ये हँसने में तुम्हारे दाँत अंजुम से

अरशद अली ख़ान क़लक़

मिलता है क़ैद-ए-ग़म में भी लुत्फ़-ए-फ़ज़ा-ए-बाग़

अरशद अली ख़ान क़लक़

लुट रही है दौलत-ए-दीदार क़ैसर-बाग़ में

अरशद अली ख़ान क़लक़

इश्क़ में तेरे जान-ए-ज़ार हैफ़ है मुफ़्त में चली

अरशद अली ख़ान क़लक़

हम तो हों दिल से दूर रहें पास और लोग

अरशद अली ख़ान क़लक़

हैं तेग़-ए-नाज़-ए-यार के बिस्मिल अलग अलग

अरशद अली ख़ान क़लक़

गुलों पर साफ़ धोका हो गया रंगीं कटोरी का

अरशद अली ख़ान क़लक़

गर दिल में कर के सैर-ए-दिल-ए-दाग़-दार देख

अरशद अली ख़ान क़लक़

दिल में आते ही ख़ुशी साथ ही इक ग़म आया

अरशद अली ख़ान क़लक़

दाँतों से जबकि उस गुल-ए-तर के दबाए होंठ

अरशद अली ख़ान क़लक़

दफ़्तर जो गुलों के वो सनम खोल रहा है

अरशद अली ख़ान क़लक़

बुत-परस्ती ने किया आशिक़-ए-यज़्दाँ मुझ को

अरशद अली ख़ान क़लक़

बे-ज़बानों को भी गोयाई सिखाना चाहिए

अरशद अली ख़ान क़लक़

अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का

अरशद अली ख़ान क़लक़

आश्ना होते ही उस इश्क़ ने मारा मुझ को

अरशद अली ख़ान क़लक़

कोई भी शय हो मियाँ जान से प्यारी किसे है

अरशद अब्दुल हमीद

जुनूँ के तौर हम इदराक ही से बाँधते हैं

अरशद अब्दुल हमीद

संग-ए-दर उस का हर इक दर पे लगा मिलता है

अर्श सिद्दीक़ी

कश्ती-ए-दिल नज़्र-ए-तूफ़ाँ हो गई

अर्श सहबाई

मैं क्यूँ भूल जाऊँ

अर्श मलसियानी

जश्न-ए-आज़ादी

अर्श मलसियानी

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