गुल Poetry (page 74)

झपकी ज़रा जो आँख जवानी गुज़र गई

असर लखनवी

भूले अफ़्साने वफ़ा के याद दिल्वाते हुए

असर लखनवी

बहार है तिरे आरिज़ से लौ लगाए हुए

असर लखनवी

अश्क-ए-गुल-रंग निसार-ए-ग़म-ए-जानाना करें

असर लखनवी

आप बिक जाए कोई ऐसा ख़रीदार न था

असर लखनवी

इन अक़्ल के बंदों में आशुफ़्ता-सरी क्यूँ है

असद मुल्तानी

शश्दर-ओ-हैरान है जो भी ख़रीदारों में है

असद जाफ़री

कोई दिल-जूई नहीं थी कोई शुनवाई न थी

असद जाफ़री

जब तक वो शो'ला-रू मिरे पेश-ए-नज़र न था

असद जाफ़री

ग़ुंचा ओ गुल माह ओ अंजुम सब के सब बेकार थे

असद भोपाली

इश्क़ को जब हुस्न से नज़रें मिलाना आ गया

असद भोपाली

ख़ुशी भी अब सरापा ग़म लगे है

असअ'द बदायुनी

हवा हवस के इलाक़े दिखा रही है मुझे

असअ'द बदायुनी

ख़ुदी की फ़ितरत-ए-ज़र्रीं के राज़-हा-ए-दरूँ

आरज़ू सहारनपुरी

ये गुल खिल रहा है वो मुरझा रहा है

आरज़ू लखनवी

किस गुल की बू है दामन-ए-दिल में बसी हुई

आरज़ू लखनवी

एक दिल पत्थर बने और एक दिल बन जाए मोम

आरज़ू लखनवी

वो बन कर बे-ज़बाँ लेने को बैठे हैं ज़बाँ मुझ से

आरज़ू लखनवी

तुम्हें क्या काम नालों से तुम्हें क्या काम आहों से

आरज़ू लखनवी

फेर जो पड़ना था क़िस्मत में वो हस्ब-ए-मामूल पड़ा

आरज़ू लखनवी

जो बुत है यहाँ अपनी जा एक ही है

आरज़ू लखनवी

हुस्न से शरह हुई इश्क़ के अफ़्साने की

आरज़ू लखनवी

दिल दे रहा था जो उसे बे-दिल बना दिया

आरज़ू लखनवी

भोले बन कर हाल न पूछो बहते हैं अश्क तो बहने दो

आरज़ू लखनवी

अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ' भी थी परवाना भी

आरज़ू लखनवी

आराम के थे साथी क्या क्या जब वक़्त पड़ा तो कोई नहीं

आरज़ू लखनवी

मौक़ूफ़ फ़स्ल-ए-गुल पे नहीं रौनक़-ए-चमन

अर्शी भोपाली

नए मौसम की बशारत हैं हम

अरशद महमूद नाशाद

ऐ दिल तिरे तुफ़ैल जो मुझ पर सितम हुए

अरशद कमाल

फिर गया आँखों में उस कान के मोती का ख़याल

अरशद अली ख़ान क़लक़

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