गुल Poetry (page 71)

आँख की दहलीज़ से उतरा तो सहरा हो गया

अय्यूब ख़ावर

शिकस्ता-दिल की ख़ुशी दोस्तो ख़ुशी तो न थी

औलाद अली रिज़वी

ख़्वाहिशें दुनिया की बार-ए-दोश-ओ-गर्दन हो गईं

औज लखनवी

चार-सू आलम-ए-इम्काँ में अँधेरा देखा

औज लखनवी

इक थकन क़ुव्वत-ए-इज़हार में आ जाती है

अतुल अजनबी

इश्क़ पागल-पन में संजीदा न हो जाए कहीं

आतिफ़ ख़ान

दुनिया से हुए बैठे हो रू-पोश ऐ जाना

आतिफ़ ख़ान

ग़म के बादल दिल-ए-नाशाद पे ऐसे छाए

अतहर राज़

रौनक़-ए-बेश-ओ-कम किस के होने से है

अतहर नफ़ीस

इतने दिन के बाद तू आया है आज

अतहर नफ़ीस

हम भी बदल गए तिरी तर्ज़-ए-अदा के साथ साथ

अतहर नफ़ीस

माना कि सितारे सर-ए-अफ़्लाक बहुत हैं

अताउर्रहमान जमील

आसमानों में भी दरवाज़ा लगा कर देखें

अता तुराब

उन का जश्न-ए-साल-गिरह

असरार-उल-हक़ मजाज़

शौक़-ए-गुरेज़ाँ

असरार-उल-हक़ मजाज़

शहर-ए-निगार

असरार-उल-हक़ मजाज़

सरमाया-दारी

असरार-उल-हक़ मजाज़

नुमाइश में

असरार-उल-हक़ मजाज़

नज़्र-ए-अलीगढ़

असरार-उल-हक़ मजाज़

मादाम

असरार-उल-हक़ मजाज़

ख़िराज-अक़ीदत

असरार-उल-हक़ मजाज़

इशरत-ए-तन्हाई

असरार-उल-हक़ मजाज़

एक जिला-वतन की वापसी

असरार-उल-हक़ मजाज़

एक दोस्त की ख़ुश-मज़ाक़ी पर

असरार-उल-हक़ मजाज़

आज भी

असरार-उल-हक़ मजाज़

यूँही बैठे रहो बस दर्द-ए-दिल से बे-ख़बर हो कर

असरार-उल-हक़ मजाज़

ये जहाँ बारगह-ए-रित्ल-ए-गिराँ है साक़ी

असरार-उल-हक़ मजाज़

रुख़्सत ऐ हम-सफ़रो शहर-ए-निगार आ ही गया

असरार-उल-हक़ मजाज़

कुछ तुझ को ख़बर है हम क्या क्या ऐ शोरिश-ए-दौराँ भूल गए

असरार-उल-हक़ मजाज़

धुआँ सा इक सम्त उठ रहा है शरारे उड़ उड़ के आ रहे हैं

असरार-उल-हक़ मजाज़

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