गुल Poetry (page 69)
शमशीर-ए-बरहना माँग ग़ज़ब बालों की महक फिर वैसी ही
ज़फ़र
सब रंग में उस गुल की मिरे शान है मौजूद
ज़फ़र
न दाइम ग़म है ने इशरत कभी यूँ है कभी वूँ है
ज़फ़र
मर गए ऐ वाह उन की नाज़-बरदारी में हम
ज़फ़र
जब कभी दरिया में होते साया-अफ़गन आप हैं
ज़फ़र
इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल
ज़फ़र
गई यक-ब-यक जो हवा पलट नहीं दिल को मेरे क़रार है
ज़फ़र
देखो इंसाँ ख़ाक का पुतला बना क्या चीज़ है
ज़फ़र
यास की कोहर में लिपटा हुआ चेहरा देखा
बाग़ हुसैन कमाल
आसमाँ पर काले बादल छा गए
बद्र-ए-आलम ख़लिश
तुम को मैं जब सलाम करता हूँ
बाबर रहमान शाह
पर सऊबत रास्तों की गर्मियाँ भी दे गया
अज़रा वहीद
अब अपनी चीख़ भी क्या अपनी बे ज़बानी क्या
अज़रा परवीन
अब आँख भी मश्शाक़ हुई ज़ेर-ओ-ज़बर की
अज़रा परवीन
हार-सिंगार
अज़रा नक़वी
कहें से कोई नुक़्ता आ जाए
अज़रा अब्बास
इक हम कि उन के वास्ते महव-ए-फ़ुग़ाँ रहे
अज़ीज़ वारसी
परछाइयाँ
अज़ीज़ तमन्नाई
हयूला
अज़ीज़ तमन्नाई
उसी ने साथ दिया ज़िंदगी की राहों में
अज़ीज़ तमन्नाई
जिस को चलना है चले रख़्त-ए-सफ़र बाँधे हुए
अज़ीज़ तमन्नाई
चोर-बाज़ार
अज़ीज़ क़ैसी
बाक़ीस्त शब-ए-फ़ित्ना
अज़ीज़ क़ैसी
तमीज़ अपने में ग़ैर में क्या तुम्हें जो अपना न कर सके हम
अज़ीज़ क़ैसी
पस-ए-तर्क-ए-इश्क़ भी उम्र-भर तरफ़-ए-मिज़ा पे तरी रही
अज़ीज़ क़ैसी
'मीर'
अज़ीज़ लखनवी
लज़्ज़त-ए-ग़म
अज़ीज़ लखनवी
परतव-ए-हुस्न कहीं अंजुमन-अफ़रोज़ तो हो
अज़ीज़ लखनवी
कर चुके बर्बाद दिल को फ़िक्र क्या अंजाम की
अज़ीज़ लखनवी
एक ही ख़त में है क्या हाल जो मज़कूर नहीं
अज़ीज़ लखनवी
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