गुल Poetry (page 68)

रंग-ए-दिल रंग-ए-नज़र याद आया

बाक़ी सिद्दीक़ी

कहता है हर मकीं से मकाँ बोलते रहो

बाक़ी सिद्दीक़ी

दिल से बाहर हैं ख़रीदार अभी

बाक़ी सिद्दीक़ी

दाग़-ए-दिल हम को याद आने लगे

बाक़ी सिद्दीक़ी

उदास बाम है दर काटने को आता है

बाक़ी अहमदपुरी

बुलबुल से कहा गुल ने कर तर्क मुलाक़ातें

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

ये रुख़-ए-यार नहीं ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ के तले

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

सैर में तेरी है बुलबुल बोस्ताँ बे-कार है

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

रंग में हम मस से बतर हो चुके

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

क़ज़ा ने हाल-ए-गुल जब सफ़्हा-ए-तक़दीर पर लिक्खा

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

नर्गिस-ए-मस्त तिरी जाए जो तुल बरसर-ए-गुल

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

मुझे तो इश्क़ में अब ऐश-ओ-ग़म बराबर है

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

मेरी गो आह से जंगल न जले ख़ुश्क तो हो

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

काबा तो संग-ओ-ख़िश्त से ऐ शैख़ मिल बना

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

ग़ैरत-ए-गुल है तू और चाक-गरेबाँ हम हैं

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

छुप के नज़रों से इन आँखों की फ़रामोश की राह

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

कभी तो याद के गुल-दान में सजाऊँ उसे

बाक़र नक़वी

क्या ख़बर थी कि कभी बे-सर-ओ-सामाँ होंगे

बाक़र मेहदी

दश्त-ए-वफ़ा में ठोकरें खाने का शौक़ था

बाक़र मेहदी

रहता है ज़ुल्फ़-ए-यार मिरे मन से मन लगा

बाक़र आगाह वेलोरी

कितना भी मुस्कुराइए दिल है मगर बुझा बुझा

बनो ताहिरा सईद

सबा के हाथ पीले हो गए

बलराज कोमल

ड्रग स्टोर

बलराज कोमल

दिल के हाथों ख़राब हो जाना

बलराज हयात

यार को हम ने बरमला देखा

बहराम जी

कब तसव्वुर यार-ए-गुल-रुख़्सार का फ़े'अल-ए-अबस

बहराम जी

बहस क्यूँ है काफ़िर-ओ-दीं-दार की

बहराम जी

याँ ख़ाक का बिस्तर है गले में कफ़नी है

ज़फ़र

वो सौ सौ अठखटों से घर से बाहर दो क़दम निकले

ज़फ़र

टुकड़े नहीं हैं आँसुओं में दिल के चार पाँच

ज़फ़र

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