गुल Poetry (page 67)

फ़स्ल-ए-गुल कब लुटी नहीं मालूम

बेकल उत्साही

ये ख़ुसरवी-ओ-शौकत-ए-शाहाना मुबारक

बेदम शाह वारसी

क्या गिला इस का जो मेरा दिल गया

बेदम शाह वारसी

कभी यहाँ लिए हुए कभी वहाँ लिए हुए

बेदम शाह वारसी

रौनक़ फ़रोग़-ए-दर्द से कुछ अंजुमन में है

बेबाक भोजपुरी

राज़ है इबरत-असर फ़ितरत की हर तहरीर का

बेबाक भोजपुरी

ग़म-ए-आफ़ाक़ में आरिफ़ अगर करवट बदलता है

बेबाक भोजपुरी

फ़स्ल-ए-बहार जाने ये क्या गुल कतर गई

बेबाक भोजपुरी

बख़्त क्या जाने भला या कि बुरा होता है

बेबाक भोजपुरी

बड़ी दिल-शिकन है रह-ए-सफ़र कोई हम-सफ़र है न यार है

बेबाक भोजपुरी

ये मैं कहूँगा फ़लक पे जा कर ज़मीं से आया हूँ तंग आ कर

बयान मेरठी

सुब्ह क़यामत आएगी कोई न कह सका कि यूँ

बयान मेरठी

लहू टपका किसी की आरज़ू से

बयान मेरठी

ख़ाक करती है ब-रंग-ए-चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम रक़्स

बयान मेरठी

चराग़-ए-हुस्न है रौशन किसी का

बयान मेरठी

जो ज़मीं पर फ़राग़ रखते हैं

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

मेरे रोने पर किसी की चश्म गिर्यां हाए हाए

बासित भोपाली

हर तरफ़ सोज़ का अंदाज़ जुदागाना है

बासित भोपाली

कौन कहता है नसीम-ए-सहरी आती है

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

शहर-ए-फ़स्ल-ए-गुल से चल कर पत्थरों के दरमियाँ

बशीर फ़ारूक़ी

वो कभी शाख़-ए-गुल-ए-तर की तरह लगता है

बशीर फ़ारूक़

सबा गुल-ए-रेज़ जाँ-परवर फ़ज़ा है

बशीर फ़ारूक़

शो'ला-ए-गुल गुलाब शो'ला क्या

बशीर बद्र

मेरी आँखों में तिरे प्यार का आँसू आए

बशीर बद्र

हैराँ है ज़माने में किसे अपना कहे दिल

बशीर मुंज़िर

पर्दा उलट के उस ने जो चेहरा दिखा दिया

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

लाख पर्दे से रुख़-ए-अनवर अयाँ हो जाएगा

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

जब अयाँ सुब्ह को वो नूर-ए-मुजस्सम हो जाए

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

वक़्त रस्ते में खड़ा है कि नहीं

बाक़ी सिद्दीक़ी

सुब्ह का भेद मिला क्या हम को

बाक़ी सिद्दीक़ी

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