गुल Poetry (page 66)
फ़राहम जिस क़दर इशरत के सामाँ होते जाते हैं
बिस्मिल सईदी
ये बुत फिर अब के बहुत सर उठा के बैठे हैं
बिस्मिल अज़ीमाबादी
निगाह-ए-क़हर होगी या मोहब्बत की नज़र होगी
बिस्मिल अज़ीमाबादी
साज़-ए-हस्ती का अजब जोश नज़र आता है
बिस्मिल इलाहाबादी
क्या रौशनी-ए-हुस्न-ए-सबीह अंजुमन में है
बिशन नरायण दराबर
जिन पर निसार शम्स-ओ-क़मर आसमाँ के हैं
बिशन नरायण दराबर
ज़ब्त-ए-नाला दिल-ए-फ़िगार न कर
बिर्ज लाल रअना
मोहब्बत नग़्मा भी है साज़ भी है
बिर्ज लाल रअना
दुनिया में वफ़ा-केश बशर ढूँढ रहा हूँ
बिर्ज लाल रअना
मातम-कदा बना है गुलिस्ताँ तिरे बग़ैर
बिल्क़ीस बेगम
तमाम लाला ओ गुल के चराग़ रौशन हैं
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
कब इक मक़ाम पे रुकती है सर-फिरी है हवा
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
ज़मीं नई थी अनासिर की ख़ू बदलती थी
बिलाल अहमद
किस गुल के तसव्वुर में है ऐ लाला जिगर-ख़ूँ
भारतेंदु हरिश्चंद्र
फिर मुझे लिखना जो वस्फ़-ए-रू-ए-जानाँ हो गया
भारतेंदु हरिश्चंद्र
फिर आई फ़स्ल-ए-गुल फिर ज़ख़्म-ए-दिल रह रह के पकते हैं
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ख़याल-ए-नावक-ए-मिज़्गाँ में बस हम सर पटकते हैं
भारतेंदु हरिश्चंद्र
दिल मिरा तीर-ए-सितम-गर का निशाना हो गया
भारतेंदु हरिश्चंद्र
दिल आतिश-ए-हिज्राँ से जलाना नहीं अच्छा
भारतेंदु हरिश्चंद्र
असीरान-ए-क़फ़स सेहन-ए-चमन को याद करते हैं
भारतेंदु हरिश्चंद्र
अजब जौबन है गुल पर आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
आज मक़्तल में ख़बर है कि चराग़ाँ होगा
बेताब सूरी
वो देखते जाते हैं कनखियों से इधर भी
बेख़ुद देहलवी
हैं निकहत-ए-गुल बाग़ में ऐ बाद-ए-सबा हम
बेख़ुद देहलवी
हवा-ए-इश्क़ ने भी गुल खिलाए हैं क्या क्या
बेकल उत्साही
यूँ तो कहने को तिरी राह का पत्थर निकला
बेकल उत्साही
उदास काग़ज़ी मौसम में रंग ओ बू रख दे
बेकल उत्साही
रहीन-ए-आस रही है न महव-ए-यास रही
बेकल उत्साही
नए ज़माने में अब ये कमाल होने लगा
बेकल उत्साही
मैं जब भी कोई अछूता कलाम लिखता हूँ
बेकल उत्साही
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