गुल Poetry (page 65)

क्या वहीं मिलोगे तुम

दर्शिका वसानी

तमाम नूर-ए-तजल्ली तमाम रंग-ए-चमन

दर्शन सिंह

किसी की शाम-ए-सादगी सहर का रंग पा गई

दर्शन सिंह

हँसी गुलों में सितारों में रौशनी न मिली

दर्शन सिंह

ने गुल को है सबात न हम को है ए'तिबार

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

हमें तो बाग़ तुझ बिन ख़ाना-ए-मातम नज़र आया

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

बाग़-ए-जहाँ के गुल हैं या ख़ार हैं तो हम हैं

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

मदरसा या दैर था या काबा या बुत-ख़ाना था

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

मदरसा या दैर था या काबा या बुत-ख़ाना था

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

हम तुझ से किस हवस की फ़लक जुस्तुजू करें

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

चमन में सुब्ह ये कहती थी हो कर चश्म-ए-तर शबनम

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

बाग़-ए-जहाँ के गुल हैं या ख़ार हैं तो हम हैं

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

शब-ए-विसाल है गुल कर दो इन चराग़ों को

दाग़ देहलवी

हुआ जब सामना उस ख़ूब-रू से

दाग़ देहलवी

बुतान-ए-माहवश उजड़ी हुई मंज़िल में रहते हैं

दाग़ देहलवी

अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का

दाग़ देहलवी

जब सर-ए-बाम वो ख़ुर्शीद-जमाल आता है

चरख़ चिन्योटी

ले उड़ा रंग फ़लक जल्वा-ए-रा'नाई का

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

क्या हुस्न है यूसुफ़ भी ख़रीदार है तेरा

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

फ़ित्ना-ए-रोज़गार की बातें

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

दौर-ए-निगाह-ए-साक़ी-ए-मस्ताना एक है

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

मर्सिया गोपाल कृष्ण गोखले

चकबस्त ब्रिज नारायण

ख़ाक-ए-हिंद

चकबस्त ब्रिज नारायण

हुब्ब-ए-क़ौमी

चकबस्त ब्रिज नारायण

न कोई दोस्त दुश्मन हो शरीक-ए-दर्द-ओ-ग़म मेरा

चकबस्त ब्रिज नारायण

कुछ ऐसा पास-ए-ग़ैरत उठ गया इस अहद-ए-पुर-फ़न में

चकबस्त ब्रिज नारायण

अगर दर्द-ए-मोहब्बत से न इंसाँ आश्ना होता

चकबस्त ब्रिज नारायण

होती नहीं रसाई-ए-बर्क़-ए-तपाँ कहाँ

ब्रहमा नन्द जलीस

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