गुल Poetry (page 63)

जमेगी कैसे बिसात-ए-याराँ कि शीशा ओ जाम बुझ गए हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

जैसे हम-बज़्म हैं फिर यार-ए-तरह-दार से हम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हम सादा ही ऐसे थे की यूँ ही पज़ीराई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

चाँद निकले किसी जानिब तिरी ज़ेबाई का

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

अब वही हर्फ़-ए-जुनूँ सब की ज़बाँ ठहरी है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

अब के बरस दस्तूर-ए-सितम में क्या क्या बाब ईज़ाद हुए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

''आप की याद आती रही रात भर''

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

आज यूँ मौज-दर-मौज ग़म थम गया इस तरह ग़म-ज़दों को क़रार आ गया

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

उन लबों की याद आई गुल के मुस्कुराने से

फ़य्याज़ अहमद

वस्फ़ जो आप से जुड़ा होगा

फ़ैसल सईद फ़ैसल

मुँह बाँध कर कली सा न रह मेरे पास तू

फ़ाएज़ देहलवी

जान-ए-अय्याम-ए-दिलबरी है याद

फ़ाएज़ देहलवी

ऐ यार नसीहत को अगर गोश करे तू

फ़ाएज़ देहलवी

निगाह-ए-बाग़बाँ कुछ मेहरबाँ मा'लूम होती है

एज़ाज़ अफ़ज़ल

मय-ख़ाना है बिना-ए-शर-ओ-ख़ैर तो नहीं

एजाज़ वारसी

ख़ून-ए-नाहक़ थी फ़क़त दुनिया-ए-आब-ओ-गिल की बात

एजाज़ वारसी

मिल सकेगी अब भी दाद-ए-आबला-पाई तो क्या

एजाज़ सिद्दीक़ी

दुनिया सबब-ए-शोरिश-ए-ग़म पूछ रही है

एजाज़ सिद्दीक़ी

मिट गया ग़म तिरे तकल्लुम से

एजाज़ रहमानी

कितने बा-होश हो गए हम लोग

एजाज़ रहमानी

दूसरों की आँख ले कर भी पशेमानी हुई

एजाज़ उबैद

अक्स उभरा न था आईना-ए-दिल-दारी का

एजाज़ गुल

चुप

एजाज़ फ़ारूक़ी

सदा-ए-अहद-ए-वफ़ा को ज़वाल क्यूँ आया

एजाज़ अासिफ़

तुझे पसंद जो दिल की लगन नहीं आई

एहतिशाम हुसैन

कुछ मिरे शौक़ ने दर-पर्दा कहा हो जैसे

एहतिशाम हुसैन

यूँ उस पे मिरी अर्ज़-ए-तमन्ना का असर था

एहसान दानिश

सोज़-ए-जुनूँ को दिल की ग़िज़ा कर दिया गया

एहसान दानिश

रंग-ए-तहज़ीब-ओ-तमद्दुन के शनासा हम भी हैं

एहसान दानिश

नज़र फ़रेब-ए-क़ज़ा खा गई तो क्या होगा

एहसान दानिश

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