गुल Poetry (page 61)

किस उजाले का निशाँ हैं हम लोग

फ़रीद जावेद

जब भी शम-ए-तरब जलाई है

फ़रीद जावेद

हमारे सामने बेगाना-वार आओ नहीं

फ़रीद जावेद

हमारे सामने बेगाना-वार आओ नहीं

फ़रीद जावेद

अभी मकाँ मैं अभी सू-ए-ला-मकाँ हूँ मैं

फ़रीद जावेद

तक़ाज़ा

फ़रीद इशरती

काग़ज़ के फूल

फ़रीद इशरती

अफ़्साना-ए-शब-रंग

फ़रीद इशरती

दिल में शगुफ़्ता गुल भी हैं रौशन चराग़ भी

फ़रीद इशरती

कोई जब मिल के मुस्कुराया था

फ़रह इक़बाल

मैं एक बूँद समुंदर हुआ तो कैसे हुआ

फ़राग़ रोहवी

यूँ नज़्म-ए-जहाँ दरहम-ओ-बरहम न हुआ था

फ़ानी बदायुनी

वा-ए-नादानी ये हसरत थी कि होता दर खुला

फ़ानी बदायुनी

मर कर तिरे ख़याल को टाले हुए तो हैं

फ़ानी बदायुनी

ख़ुशी से रंज का बदला यहाँ नहीं मिलता

फ़ानी बदायुनी

ख़ुद मसीहा ख़ुद ही क़ातिल हैं तो वो भी क्या करें

फ़ानी बदायुनी

ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तिरे दीवाने का

फ़ानी बदायुनी

जज़्ब-ए-दिल जब ब-रू-ए-कार आया

फ़ानी बदायुनी

दिल की तरफ़ हिजाब-ए-तकल्लुफ़ उठा के देख

फ़ानी बदायुनी

गुल तो गुल ख़ार तक चुन लिए हैं

फ़ना निज़ामी कानपुरी

यूँ इंतिक़ाम तुझ से फ़स्ल-ए-बहार लेंगे

फ़ना निज़ामी कानपुरी

मुझे रुतबा-ए-ग़म बताना पड़ेगा

फ़ना निज़ामी कानपुरी

मेरे चेहरे से ग़म आश्कारा नहीं

फ़ना निज़ामी कानपुरी

कोई समझेगा क्या राज़-ए-गुलशन

फ़ना निज़ामी कानपुरी

हुस्न का एक आह ने चेहरा निढाल कर दिया

फ़ना निज़ामी कानपुरी

मेरे रश्क-ए-क़मर तू ने पहली नज़र जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया

फ़ना बुलंदशहरी

कुछ ज़िंदगी में लुत्फ़ का सामाँ नहीं रहा

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

ऐ दिल अच्छा नहीं मसरूफ़-ए-फ़ुग़ाँ हो जाना

फ़ैज़ुल हसन

मामूली बे-कार समझने वाले मुझ से दूर रहें

फ़ैज़ आलम बाबर

न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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