गुल Poetry (page 59)

सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी

रात भी नींद भी कहानी भी

फ़िराक़ गोरखपुरी

निगाह-ए-नाज़ ने पर्दे उठाए हैं क्या क्या

फ़िराक़ गोरखपुरी

मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले

फ़िराक़ गोरखपुरी

किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी

फ़िराक़ गोरखपुरी

कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में

फ़िराक़ गोरखपुरी

'फ़िराक़' इक नई सूरत निकल तो सकती है

फ़िराक़ गोरखपुरी

बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में

फ़िराक़ गोरखपुरी

जुरअत-ए-इश्क़ हवस-कार हुई जाती है

फ़िगार उन्नावी

ग़म-ए-जानाँ से रंगीं और कोई ग़म नहीं होता

फ़िगार उन्नावी

चमन अपने रंग में मस्त है कोई ग़म-गुसार-ए-दिगर नहीं

फ़िगार उन्नावी

उसे मालूम है मैं सर-फिरा हूँ

फ़ज़्ल ताबिश

बहार आई गुल-अफ़्शानी के दिन हैं

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

अस्बाब-ए-ज़िंदगी की हर इक चीज़ है गराँ

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

मैं जिस जगह हूँ वहाँ बूद-ओ-बाश किस की है

फ़ाज़िल जमीली

गुज़रती है जो दिल पर वो कहानी याद रखता हूँ

फ़ाज़िल जमीली

कोहसारों में नहीं है कि बयाबाँ में नहीं

फ़ाज़िल अंसारी

बशर की ज़ात में शर के सिवा कुछ और नहीं

फ़ाज़िल अंसारी

इधर भी देख ज़रा बे-क़रार हम भी हैं

फ़ज़ल हुसैन साबिर

रूह और बदन दोनों दाग़ दाग़ हैं यारो

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

न दामनों में यहाँ ख़ाक-ए-रहगुज़र बाँधो

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

मुद्दतों के बाद फिर कुंज-ए-हिरा रौशन हुआ

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

जुरअत-ए-इज़हार से रोकेगी क्या

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

आह को बाद-ए-सबा दर्द को ख़ुशबू लिखना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

उस की गली में ज़र्फ़ से बढ़ कर मिला मुझे

फ़व्वाद अहमद

जो तू नहीं है तो लगता है अब कि तू क्या है

फ़सीह अकमल

कीसा-ए-गुल में बंद थी ख़ुशबू

फ़रताश सय्यद

कुश्तगान-ए-ख़ंजर-ए-तस्लीम-रा

फर्रुख यार

सुनहरी दरवाज़े के बाहर

फ़ारूक़ नाज़की

और मैं चुप रहा

फ़ारूक़ नाज़की

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