गुल Poetry (page 58)
धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव
ग़ालिब
धमकी में मर गया जो न बाब-ए-नबर्द था
ग़ालिब
चश्म-ए-ख़ूबाँ ख़ामुशी में भी नवा-पर्दाज़ है
ग़ालिब
चाहिए अच्छों को जितना चाहिए
ग़ालिब
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
ग़ालिब
बर्शिकाल-ए-गिर्या-ए-आशिक़ है देखा चाहिए
ग़ालिब
बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी ये डराता है मुझे
ग़ालिब
अज़-मेहर ता-ब-ज़र्रा दिल-ओ-दिल है आइना
ग़ालिब
अर्ज़-ए-नाज़-ए-शोख़ी-ए-दंदाँ बराए-ख़ंदा है
ग़ालिब
आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त
ग़ालिब
आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे
ग़ालिब
आबरू क्या ख़ाक उस गुल की कि गुलशन में नहीं
ग़ालिब
आ कि मिरी जान को क़रार नहीं है
ग़ालिब
ये सहरा-ए-तलब या बेशा-ए-आशुफ़्ता-हाली है
गौहर होशियारपुरी
समन-बरों से चमन दौलत-ए-नुमू माँगे
गौहर होशियारपुरी
रह-ए-इश्क़ में ग़म-ए-ज़िंदगी की भी ज़िंदगी सफ़री रही
गणेश बिहारी तर्ज़
कितने जुमले हैं कि जो रू-पोश हैं यारों के बीच
गणेश बिहारी तर्ज़
वो मौज-ए-ख़ुनुक शहर-ए-शरर तक नहीं आई
फ़ुज़ैल जाफ़री
दिलों के आइने धुँदले पड़े हैं
फ़ुज़ैल जाफ़री
आतिश-फ़िशाँ ज़बाँ ही नहीं थी बदन भी था
फ़ुज़ैल जाफ़री
तमाम जिस्म की परतें जुदा जुदा करके
फ़िज़ा कौसरी
इंतिख़ाब-ए-निगह-ए-शौक़ को मुश्किल भी नहीं
फ़ितरत अंसारी
दामन-ए-हुस्न में हर अश्क-ए-तमन्ना रख दो
फ़ितरत अंसारी
वह ज़ुल्म-ओ-सितम ढाए और मुझ से वफ़ा माँगे
फ़िरदौस गयावी
तमाम अजनबी चेहरे सजे हैं चारों तरफ़
फ़िराक़ जलालपुरी
परछाइयाँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
आज़ादी
फ़िराक़ गोरखपुरी
ज़िंदगी दर्द की कहानी है
फ़िराक़ गोरखपुरी
ये नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चराग़
फ़िराक़ गोरखपुरी
ये मौत-ओ-अदम कौन-ओ-मकाँ और ही कुछ है
फ़िराक़ गोरखपुरी
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