गहर Poetry
कैसे समझेगा सदफ़ का वो गुहर से रिश्ता
अख़्तर हाशमी
शाइ'र की इल्तिजा
फ़ज़लुर्रहमान
गुल-ओ-गुलज़ार गुहर चाँद सितारे बच्चे
फ़ारूक़ इंजीनियर
ज़िंदगी और मौत
फ़ज़लुर्रहमान
सुख़न के कुछ तो गुहर मैं भी नज़्र करता चलूँ
ज़ुबैर रिज़वी
हवा की अंधी पनाहों में मत उछाल मुझे
ज़ुबैर रिज़वी
हम लोग जो ख़ाक छानते हैं
ज़ेहरा निगाह
शोला-ए-मौज-ए-तलब ख़ून-ए-जिगर से निकला
ज़ेब ग़ौरी
है बहुत ताक़ वो बेदाद में डर है ये भी
ज़ेब ग़ौरी
दिल देख रहे हैं वो जिगर देख रहे हैं
ज़हीर अहमद ताज
नवा-ए-हक़ पे हूँ क़ातिल का डर अज़ीज़ नहीं
ज़फ़र कलीम
चल पड़े तो फिर अपनी धुन में बे-ख़बर बरसों
ज़फ़र कलीम
ज़ख़्मों की मुनाजात में पिन्हाँ वो असर था
युसूफ़ जमाल
मुझे आगही का निशाँ समझ के मिटाओ मत
यासमीन हामिद
ढूँढता हक़ को दर-ब-दर है तू
यासीन अली ख़ाँ मरकज़
इस क़दर ग़र्क़ लहू में ये दिल-ए-ज़ार न था
इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
ज़ेहन-ए-रसा की गिर्हें मगर खोलने लगे
वज़ीर आग़ा
नज़र मिलते ही बरसे अश्क-ए-ख़ूँ क्यूँ दीदा-ए-तर से
वक़ार बिजनोरी
ज़हराब पीने वाले अमर हो के रह गए
वामिक़ जौनपुरी
हो रही है दर-ब-दर ऐसी जबीं-साई कि बस
वामिक़ जौनपुरी
सुख़न जिन के कि सूरत जूँ गुहर है बहर-ए-मअ'नी में
वलीउल्लाह मुहिब
दिला ये मय-कदा-ए-इश्क़ है शराब तू पी
वलीउल्लाह मुहिब
ब-तस्ख़ीर-बुताँ तस्बीह क्यूँ ज़ाहिद फिराते हैं
वलीउल्लाह मुहिब
मग़्ज़-ए-बहार इस बरस उस बिन बचा न था
वली उज़लत
आँख जो नम हो वही दीदा-ए-तर मेरा है
वहीद अख़्तर
जी में है इक दिन झूम कर उस शोख़ को सज्दा करूँ
वारिस किरमानी
देखा है कहीं रंग-ए-सहर वक़्त से पहले
तुर्फ़ा क़ुरैशी
हमारे वास्ते है एक जीना और मर जाना
तिलोकचंद महरूम
रूठ कर आँख के अंदर से निकल जाते हैं
तौक़ीर तक़ी
लगा के ग़ोता समुंदर में तुम गुहर ढूँडो
तासीर सिद्दीक़ी
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