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Collection: घटा Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 4 - Darsaal

घटा Poetry (page 4)

रोज़ खुलने की अदा भी तो नहीं आती है

शाहिद लतीफ़

अब्र लिखती है कहीं और घटा लिखती है

शाहिद कमाल

अपने हमराह मोहब्बत के हवाले रखना

शाहिद फ़रीद

तेरे सिवा

शाहिद अख़्तर

दिल के ज़ख़्मों की लवें और उभारो लोगो

शाहिद अहमद शोएब

गर्म-जोशी के नगर में सर्द-तन्हाई मिली

शाहीन बद्र

वफ़ा का शौक़ ये किस इंतिहा में ले आया

शहबाज़ ख़्वाजा

अब कहाँ ले के छुपें उर्यां बदन और तन जला

शहाब जाफ़री

उठती घटा है किस तरह बोले वो ज़ुल्फ़ उठा कि यूँ

शाह नसीर

रंग मैला न हुआ जामा-ए-उर्यानी का

शाह नसीर

न दिखाइयो हिज्र का दर्द-ओ-अलम तुझे देता हूँ चर्ख़-ए-ख़ुदा की क़सम

शाह नसीर

बे-सबब हाथ कटारी को लगाना क्या था

शाह नसीर

हम न जाएँगे रहनुमा के क़रीब

शफ़ीउल्लाह राज़

वो मय-परस्त हूँ बदली न जब नज़र आई

शाद लखनवी

गले लिपटे हैं वो बिजली के डर से

शाद लखनवी

बद-गुमानी जो हुई शम्अ' से परवाने को

शाद लखनवी

ये तो सोचा ही नहीं उस को जुदा करते हुए

शबाना यूसुफ़

हवा को और भी कुछ तेज़ कर गए हैं लोग

शायर लखनवी

मैं तोड़ूँ अहद-ओ-पैमान-ए-वफ़ा ये हो नहीं सकता

सीमाब बटालवी

कहाँ नसीब ज़मुर्रद को सुर्ख़-रूई ये

सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़

पानी में कंकर बरसाया करते थे

सौरभ शेखर

फ़ज़ा का हब्स चीरती हुई हवा उठे

सौरभ शेखर

दर-ए-मय-कदा है खुला हुआ सर-ए-चर्ख़ आज घटा भी है

सरदार सोज़

काली घटा कब आएगी फ़स्ल-ए-बहार में

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

तुम्हें शब-ए-व'अदा दर्द-ए-सर था ये सब हैं बे-ए'तिबार बातें

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

कोई उस से नहीं कहता कि ये क्या बेवफ़ाई है

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

काली काली घटा बरसती है

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

काली घटा कब आएगी फ़स्ल-ए-बहार में

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

ज़ुल्फ़ें इधर खुलीं अधर आँसू उमँड पड़े

सज्जाद बाक़र रिज़वी

वो तेरी इनायत की सज़ा याद है अब तक

सज्जाद बाक़र रिज़वी

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