घर Poetry (page 99)
धानी सुरमई सब्ज़ गुलाबी जैसे माँ का आँचल शाम
बद्र वास्ती
चराग़ों में अँधेरा है अँधेरे में उजाले हैं
बद्र वास्ती
ज़हर पिए मदहोश अँधेरी रात
बदनाम नज़र
टपकते शो'लों की बरसात में नहाउँगा
बदनाम नज़र
जो झुक के मिलते थे जलसों में मेहरबाँ की तरह
बदनाम नज़र
दिल-ओ-जाँ के फ़साने क्या हुए सब
बदनाम नज़र
बाग़-ए-दिल में कोई ग़ुंचा न खिला तेरे बा'द
बदनाम नज़र
मुझ को नहीं मालूम कि वो कौन है क्या है
बदीउज़्ज़माँ ख़ावर
भागते सूरज को पीछे छोड़ कर जाएँगे हम
बदीउज़्ज़माँ ख़ावर
हम ने आप के ग़म को हम-सफ़र बनाया है
बदर जमाली
हिज्र में जो अश्क-ए-चश्म-ए-तर गिरा
बदर जमाली
घर में रहते हुए डर लगता है
बीएस जैन जौहर
घर में रहते हुए डर लगता है
बीएस जैन जौहर
मसअले ज़ेर-ए-नज़र कितने थे
अज़रा वहीद
ग़ुबार-ए-जाँ पस-ए-दीवार-ओ-दर समेटा है
अज़रा वहीद
अब आँख भी मश्शाक़ हुई ज़ेर-ओ-ज़बर की
अज़रा परवीन
फैलते हुए शहरो अपनी वहशतें रोको
अज़रा नक़वी
अब की बार जो घर जाना तो सारे एल्बम ले आना
अज़रा नक़वी
मो'तबर से रिश्तों का साएबान रहने दो
अज़रा नक़वी
कैसे कैसे स्वाँग रचाए हम ने दुनिया-दारी में
अज़रा नक़वी
जिला-वतन होने से पहले
अज़रा अब्बास
हम दोनों
अज़रा अब्बास
हाथ खोल दिए जाएँ
अज़रा अब्बास
वतन
अज़मतुल्लाह ख़ाँ
प्यारा प्यारा घर अपना
अज़मतुल्लाह ख़ाँ
नन्हा ग़ासिब
अज़मतुल्लाह ख़ाँ
ख़ून आँसू बन गया आँखों में भर जाने के ब'अद
अज़्म शाकरी
ख़ाक उड़ाते हुए ये म'अरका सर करना है
अज़्म शाकरी
घर में चाँदी के कोई सोने के दर रख जाएगा
अज़्म शाकरी
ख़राबी
अज़्म बहज़ाद
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