घर Poetry (page 97)
कौन आया रास्ते आईना-ख़ाने हो गए
बशीर बद्र
कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो
बशीर बद्र
कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते
बशीर बद्र
घर से निकले अगर हम बहक जाएँगे
बशीर बद्र
भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा
बशीर बद्र
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
बशीर बद्र
सर पे इक साएबाँ तो रहने दे
बशीर मुंज़िर
जी नहीं लगता किताबों में किताबें क्या करें
बशीर अहमद बशीर
मुझे जीना नहीं आता
बशर नवाज़
हर नई रुत में नया होता है मंज़र मेरा
बशर नवाज़
मिसाल-ए-तार-ए-नज़र क्या नज़र नहीं आता
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
वो अंधेरा है जिधर जाते हैं हम
बाक़ी सिद्दीक़ी
तिरी निगाह का अंदाज़ क्या नज़र आया
बाक़ी सिद्दीक़ी
सुब्ह का भेद मिला क्या हम को
बाक़ी सिद्दीक़ी
रस्म-ए-सज्दा भी उठा दी हम ने
बाक़ी सिद्दीक़ी
रंग-ए-दिल रंग-ए-नज़र याद आया
बाक़ी सिद्दीक़ी
मरहला दिल का न तस्ख़ीर हुआ
बाक़ी सिद्दीक़ी
ख़बर कुछ ऐसी उड़ाई किसी ने गाँव में
बाक़ी सिद्दीक़ी
हम कहाँ आइना ले कर आए
बाक़ी सिद्दीक़ी
ऐसा वार पड़ा सर का
बाक़ी सिद्दीक़ी
सारी बस्ती में फ़क़त मेरा ही घर है बे-चराग़
बाक़ी अहमदपुरी
यूँ सितमगर नहीं होते जानाँ
बाक़ी अहमदपुरी
उदास बाम है दर काटने को आता है
बाक़ी अहमदपुरी
तू नहीं तो तेरा दर्द-ए-जाँ-फ़ज़ा मिल जाएगा
बाक़ी अहमदपुरी
रोज़-ए-वहशत है मिरे शहर में वीरानी की
बाक़ी अहमदपुरी
मुझ से बिछड़ के वो भी परेशान था बहुत
बाक़ी अहमदपुरी
बहुत जल्दी थी घर जाने की लेकिन
बाक़ी अहमदपुरी
है दिल में घर को शहर से सहरा में ले चलें
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
है दिल में घर को शहर से सहरा में ले चलें
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
थे हम इस्तादा तिरे दर पे वले बैठ गए
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
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