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Collection: घर Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 95 - Darsaal

घर Poetry (page 95)

दीद की तमन्ना में आँख भर के रोए थे

भारत भूषण पन्त

दानिस्ता जो हो न सके नादानी से हो जाता है

भारत भूषण पन्त

चाहतों के ख़्वाब की ताबीर थी बिल्कुल अलग

भारत भूषण पन्त

आब की तासीर में हूँ प्यास की शिद्दत में हूँ

भारत भूषण पन्त

रात भर गर्दिश थी उन के पासबानों की तरह

बेख़ुद देहलवी

पछताओगे फिर हम से शरारत नहीं अच्छी

बेख़ुद देहलवी

मुँह फेर कर वो कहते हैं बस मान जाइए

बेख़ुद देहलवी

मेरे हम-राह मिरे घर पे भी आफ़त आई

बेख़ुद देहलवी

लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें

बेख़ुद देहलवी

हिजाब दूर तुम्हारा शबाब कर देगा

बेख़ुद देहलवी

दिल चुरा ले गई दुज़्दीदा-नज़र देख लिया

बेख़ुद देहलवी

दे मोहब्बत तो मोहब्बत में असर पैदा कर

बेख़ुद देहलवी

ऐसा बना दिया तुझे क़ुदरत ख़ुदा की है

बेख़ुद देहलवी

लोग तो जा के समुंदर को जला आए हैं

बेकल उत्साही

यूँ तो कहने को तिरी राह का पत्थर निकला

बेकल उत्साही

उधर वो हाथों के पत्थर बदलते रहते हैं

बेकल उत्साही

तो पहले मेरा ही हाल-ए-तबाह लिख लीजे

बेकल उत्साही

बड़े अरमान से निकला था शॉपिंग के लिए घर से

बेदिल जौनपूरी

बहुत ज़ोरों पे वी-सी-आर था कल शब जहाँ मैं था

बेदिल जौनपूरी

ऐ जुनूँ क्यूँ लिए जाता है बयाबाँ में मुझे

बेदम शाह वारसी

पर्दे उठे हुए भी हैं उन की इधर नज़र भी है

बेदम शाह वारसी

न तो अपने घर में क़रार है न तिरी गली में क़याम है

बेदम शाह वारसी

कौन सा घर है कि ऐ जाँ नहीं काशाना तिरा और जल्वा-ख़ाना तिरा

बेदम शाह वारसी

काबे का शौक़ है न सनम-ख़ाना चाहिए

बेदम शाह वारसी

ख़ंजर तलाश करता है

बेबाक भोजपुरी

ये मैं कहूँगा फ़लक पे जा कर ज़मीं से आया हूँ तंग आ कर

बयान मेरठी

सर-ए-शोरीदा पा-ए-दश्त-ए-पैमा शाम-ए-हिज्राँ था

बयान मेरठी

ऐ जुनूँ हाथ के चलते ही मचल जाऊँगा

बयान मेरठी

तेग़ चढ़ उस की सान पर आई

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

है दुनिया में ज़बाँ मेरी अगर बंद

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

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