घर Poetry (page 92)
तुम्हारी आँखें
दर्शिका वसानी
पूरा चाँद
दर्शिका वसानी
काश
दर्शिका वसानी
अश्क मेरे अपने
दर्शिका वसानी
चश्म-ए-बीना हो तो क़ैद-ए-हरम-ओ-तूर नहीं
दर्शन सिंह
तोहमत-ए-चंद अपने ज़िम्मे धर चले
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
पानी के शीशों में रक्खी जाती है
दानियाल तरीर
ख़्वाब जज़ीरा बन सकते थे नहीं बने
दानियाल तरीर
हश्र इक गुज़रा है वीराने पे घर होने तक
दानिश फ़राही
फिर गया जब से कोई आ के हमारे दर तक
दाग़ देहलवी
डरता हूँ देख कर दिल-ए-बे-आरज़ू को मैं
दाग़ देहलवी
ज़ाहिद न कह बुरी कि ये मस्ताने आदमी हैं
दाग़ देहलवी
क़रीने से अजब आरास्ता क़ातिल की महफ़िल है
दाग़ देहलवी
पुकारती है ख़मोशी मिरी फ़ुग़ाँ की तरह
दाग़ देहलवी
फिर शब-ए-ग़म ने मुझे शक्ल दिखाई क्यूँकर
दाग़ देहलवी
ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
दाग़ देहलवी
कहते हैं जिस को हूर वो इंसाँ तुम्हीं तो हो
दाग़ देहलवी
इधर देख लेना उधर देख लेना
दाग़ देहलवी
ग़ैर को मुँह लगा के देख लिया
दाग़ देहलवी
फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं
दाग़ देहलवी
देख कर जौबन तिरा किस किस को हैरानी हुई
दाग़ देहलवी
बुतान-ए-माहवश उजड़ी हुई मंज़िल में रहते हैं
दाग़ देहलवी
भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं
दाग़ देहलवी
भला हो पीर-ए-मुग़ाँ का इधर निगाह मिले
दाग़ देहलवी
बाक़ी जहाँ में क़ैस न फ़रहाद रह गया
दाग़ देहलवी
अब वो ये कह रहे हैं मिरी मान जाइए
दाग़ देहलवी
चेहरे पे नूर-ए-सुब्ह सियह गेसुओं में रात
दाएम ग़व्वासी
बाब-ए-रहमत पे दुआ गिर्या-कुनाँ हो जैसे
दाएम ग़व्वासी
बी.टी-नामा
कर्नल मोहम्मद ख़ान
ये हादसा मिरी आँखों से गर नहीं होता
चित्रांश खरे
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