घर Poetry (page 86)
तुम्हें पाने की हैसिय्यत नहीं है
फरीहा नक़वी
क्यूँ दिया था? बता! मेरी वीरानियों में सहारा मुझे
फरीहा नक़वी
बीते ख़्वाब की आदी आँखें कौन उन्हें समझाए
फरीहा नक़वी
अपने ही साए में था में शायद छुपा हुआ
फ़ारिग़ बुख़ारी
आँख को जकड़े थे कल ख़्वाब अज़ाबों के
फ़रहत शहज़ाद
कोई अहद-ए-वफ़ा भूला हुआ हूँ
फ़रहत नदीम हुमायूँ
औरतें काम पे निकली थीं बदन घर रख कर
फ़रहत एहसास
साँप
फ़रहत एहसास
लहर का ठहराओ
फ़रहत एहसास
बिछड़े घर का साया
फ़रहत एहसास
बैज़ा-ए-नूर
फ़रहत एहसास
ज़मीं से अर्श तलक सिलसिला हमारा भी था
फ़रहत एहसास
ज़मीं ने लफ़्ज़ उगाया नहीं बहुत दिन से
फ़रहत एहसास
ये बाग़ ज़िंदा रहे ये बहार ज़िंदा रहे
फ़रहत एहसास
वो मेरी जाँ के सदफ़ में गुहर सा रहता है
फ़रहत एहसास
उधर वो दश्त-ए-मुसलसल इधर मुसलसल मैं
फ़रहत एहसास
तेरे सूरज को तिरी शाम से पहचानते हैं
फ़रहत एहसास
सब लज़्ज़तें विसाल की बेकार करते हो
फ़रहत एहसास
रास्ता दे ऐ हुजूम-ए-शहर घर जाएँगे हम
फ़रहत एहसास
रक़्स-ए-इल्हाम कर रहा हूँ
फ़रहत एहसास
नंग धड़ंग मलंग तरंग में आएगा जो वही काम करेंगे
फ़रहत एहसास
नहीं देखता दिन जिसे चश्म-ए-शब देखती है
फ़रहत एहसास
मेरी कोई तारीफ़ नहीं है मैं वक़्फ़ों वक़्फ़ों में हूँ
फ़रहत एहसास
मिरे सुबूत बहे जा रहे हैं पानी में
फ़रहत एहसास
मैं तमाम गर्द-ओ-ग़ुबार हूँ मुझे मेरी सूरत-ए-हाल दे
फ़रहत एहसास
मैं शहरी हूँ मगर मेरी बयाबानी नहीं जाती
फ़रहत एहसास
कुर्सी-ए-दिल पे तिरे जाते ही दर्द आ बैठे
फ़रहत एहसास
कुछ बताता नहीं क्या सानेहा कर बैठा है
फ़रहत एहसास
ख़िलाफ़-ए-गर्दिश-ए-मा'मूल होना चाहता हूँ
फ़रहत एहसास
ख़ाना-साज़ उजाला मार
फ़रहत एहसास
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