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Collection: घर Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 79 - Darsaal

घर Poetry (page 79)

गलियों की उदासी पूछती है घर का सन्नाटा कहता है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

एक ज़ाती नज़्म

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ज़ेहन में दाएरे से बनाता रहा दूर ही दूर से मुस्कुराता रहा

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ये जहाँ-नवर्द की दास्ताँ ये फ़साना डोलते साए का

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

वादे यख़-बस्ता कमरों के अंदर गिरते हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

फिर वही कहने लगे तू मिरे घर आया था

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

मिलने की हर आस के पीछे अन-देखी मजबूरी थी

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

किताब-ए-आरज़ू के गुम-शुदा कुछ बाब रक्खे हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ख़्वाब कहाँ से टूटा है ताबीर से पूछते हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कहीं लोग तन्हा कहीं घर अकेले

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

गुलाबों के नशेमन से मिरे महबूब के सर तक

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

गलियों की उदासी पूछती है घर का सन्नाटा कहता है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

आफ़ाक़ में फैले हुए मंज़र से निकल कर

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

शहर उन के वास्ते है जो रहते हैं तुझ से दूर

ग़ुलाम मौला क़लक़

क्या ख़ाना-ख़राबों का लगे तेरे ठिकाना

ग़ुलाम मौला क़लक़

तुझे कल ही से नहीं बे-कली न कुछ आज ही से रहा क़लक़

ग़ुलाम मौला क़लक़

थक थक गए हैं आशिक़ दरमांदा-ए-फ़ुग़ाँ हो

ग़ुलाम मौला क़लक़

राज़-ए-दिल दोस्त को सुना बैठे

ग़ुलाम मौला क़लक़

पी भी ऐ माया-ए-शबाब शराब

ग़ुलाम मौला क़लक़

न रहा शिकवा-ए-जफ़ा न रहा

ग़ुलाम मौला क़लक़

मातम-ए-दीद है दीदार का ख़्वाहाँ होना

ग़ुलाम मौला क़लक़

ख़त ज़मीं पर न ऐ फ़ुसूँ-गर काट

ग़ुलाम मौला क़लक़

मेरी क़िस्मत है ये आवारा-ख़िरामी 'साजिद'

ग़ुलाम हुसैन साजिद

किसी की याद से दिल का अंधेरा और बढ़ता है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

उफ़ुक़ से आग उतर आई है मिरे घर भी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

नशात-ए-फ़त्ह से तो दामन-ए-दिल भर नहीं पाए

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मता-ए-दीद तो क्या जानिए किस से इबारत है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

किस ने दी आवाज़ ''सिपर की ओट में था''

ग़ुलाम हुसैन साजिद

जहाँ भर में मिरे दिल सा कोई घर हो नहीं सकता

ग़ुलाम हुसैन साजिद

इक शम्अ' की सूरत में मंज़ूर किया जाऊँ

ग़ुलाम हुसैन साजिद

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