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Collection: घर Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 78 - Darsaal

घर Poetry (page 78)

अश्क आँखों के अंदर न रहा है न रहेगा

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

आँखों का ख़ुदा ही है ये आँसू की है गर मौज

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

आइना है ये जहाँ इस में जमाल अपना है

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

जफ़ा-ए-दिल-शिकन

ग़ुलाम दस्तगीर मुबीन

वक़ार दे के कभी बे-वक़ार मत करना

गुहर खैराबादी

जिस तरफ़ भी देखिए साया नहीं

गुहर खैराबादी

उस को मुझ से रुठा दिया किस ने

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

तुम वफ़ा का एवज़ जफ़ा समझे

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

किस क़दर मुझ को ना-तवानी है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

हसरत ऐ जाँ शब-ए-जुदाई है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

भूला है बा'द-ए-मर्ग मुझे दोस्त याँ तलक

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

हवा के हाथ में ख़ंजर है और सब चुप हैं

गोविन्द गुलशन

दिल में ये एक डर है बराबर बना हुआ

गोविन्द गुलशन

अब के सावन में शरारत ये मिरे साथ हुई

गोपालदास नीरज

जब चले जाएँगे हम लौट के सावन की तरह

गोपालदास नीरज

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए

गोपालदास नीरज

स्वाँग अब तर्क-ए-मोहब्बत का रचाया जाए

गोपाल मित्तल

अपने अंजाम से डरता हूँ मैं

गोपाल मित्तल

रोज़ रौशन रहें हालात ज़रूरी तो नहीं

गोपाल कृष्णा शफ़क़

क्या बताऊँ आज वो मुझ से जुदा क्यूँकर हुआ

गोपाल कृष्णा शफ़क़

ख़ंजर को रग-ए-जाँ से गुज़रने नहीं देगा

गिरिजा व्यास

दिए से लौ नहीं पिंदार ले कर जा रही है

ग़ज़ाला शाहिद

पुरखों से चली आती है ये नक़्ल-ए-मकानी

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

झाँकता भी नहीं सूरज मिरे घर के अंदर

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

गर्मियों भर मिरे कमरे में पड़ा रहता है

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

रखता नहीं है दश्त सरोकार आब से

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

मौजूदगी का उस की असर होने लगा है

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

मुझ को ग़रीब और क़रज़-दार देख कर

ग़ुलाम मोहम्मद वामिक़

प्यार गया तो कैसे मिलते रंग से रंग और ख़्वाब से ख़्वाब

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

गुलाबों के नशेमन से मिरे महबूब के सर तक

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

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