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Collection: घर Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 77 - Darsaal

घर Poetry (page 77)

फिरता हूँ मैं घाटी घाटी सहरा सहरा तन्हा तन्हा

ग्यान चन्द

मुंतशिर हो कर रहे ये ऐसा शीराज़ा न था

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

रंग-ओ-बू का शौक़ आशोब-ए-हवा में ले गया

गुलज़ार बुख़ारी

ज़ाहिर मुसाफ़िरों का हुनर हो नहीं रहा

गुलज़ार बुख़ारी

कितनी सदियाँ ना-रसी की इंतिहा में खो गईं

गुलज़ार बुख़ारी

आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं

गुलज़ार

आइना देख कर तसल्ली हुई

गुलज़ार

विरासत

गुलज़ार

मकान

गुलज़ार

मैं काएनात में

गुलज़ार

किताबें

गुलज़ार

ख़ुदा

गुलज़ार

एक ख़्वाब

गुलज़ार

दस्तक

गुलज़ार

अख़बार

गुलज़ार

सहमा सहमा डरा सा रहता है

गुलज़ार

फूल ने टहनी से उड़ने की कोशिश की

गुलज़ार

जब भी आँखों में अश्क भर आए

गुलज़ार

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई

गुलज़ार

आँखों में जल रहा है प बुझता नहीं धुआँ

गुलज़ार

किसी की याद का चेहरा

गुलनाज़ कौसर

हमें भी अब दर ओ दीवार घर के याद आए

गुलनार आफ़रीन

न पूछ ऐ मिरे ग़म-ख़्वार क्या तमन्ना थी

गुलनार आफ़रीन

हमारा नाम पुकारे हमारे घर आए

गुलनार आफ़रीन

आँख में अश्क लिए ख़ाक लिए दामन में

गुलनार आफ़रीन

अबस घर से अपने निकाले है तू

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

आँखों से इसी तरह अगर सैल रवाँ है

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

जो यूँ आप बैरून-ए-दर जाएँगे

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

हर शजर के तईं होता है समर से पैवंद

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

दिल ब-अज़-काबा है याराँ जुब्बा-साई चाहिए

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

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