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Collection: शोक Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 66 - Darsaal

शोक Poetry (page 66)

वो जो भी बख़्शें वो इनआम ले लिया जाए

रम्ज़ आफ़ाक़ी

ज़रा ज़रा सी बात पर वो मुझ से बद-गुमाँ रहे

रमेश कँवल

ज़िंदगी तो सपना है कौन 'राम' अपना है

राम रियाज़

जो तेरे ग़म में जले हैं वो फिर बुझे ही नहीं

राम रियाज़

अब कहाँ वो पहली सी फ़ुर्सतें मयस्सर हैं

राम रियाज़

मुस्कुराती आँखों को दोस्तों की नम करना

राम रियाज़

लहकती लहरों में जाँ है किनारे ज़िंदा हैं

राम रियाज़

ये टूटी कश्तियाँ और बहर-ए-ग़म के तेज़ धारे हैं

राम कृष्ण मुज़्तर

शब-ए-ग़म की सहर नहीं होती

राम कृष्ण मुज़्तर

फिर कोई ख़लिश नज़्द-ए-राग-ए-जाँ तो नहीं है

राम कृष्ण मुज़्तर

मिरी निगाह में ये रंग-ए-सोज़-ओ-साज़ न हो

राम कृष्ण मुज़्तर

मेरे तसव्वुरात में अब कोई दूसरा नहीं

राम कृष्ण मुज़्तर

मजबूर तो बहुत हैं मोहब्बत में जी से हम

राम कृष्ण मुज़्तर

दिल-ओ-नज़र में न पैदा हुई शकेबाई

राम कृष्ण मुज़्तर

ज़रा देखें तो दुनिया कैसे कैसे रंग भरती है

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

नामूस-ए-ज़िंदगी ग़म-ए-इंसाँ में ढाल कर

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

सीने में जब दर्द कोई बो जाता है

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

क़सीदा फ़त्ह का दुश्मन की तलवारों पे लिक्खा है

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

हसीं तुझ से तिरा हुस्न-ए-तलब था

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

दीवाना कर के मुझ को तमाशा किया बहुत

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

ज़रा सा इम्कान किस क़दर था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

ज़माँ मकाँ थे मिरे सामने बिखरते हुए

राजेन्द्र मनचंदा बानी

तमाम रास्ता फूलों भरा है मेरे लिए

राजेन्द्र मनचंदा बानी

सियाह-ख़ाना-ए-उम्मीद-ए-राएगाँ से निकल

राजेन्द्र मनचंदा बानी

शफ़क़ शजर मौसमों के ज़ेवर नए नए से

राजेन्द्र मनचंदा बानी

पी चुके थे ज़हर-ए-ग़म ख़स्ता-जाँ पड़े थे हम चैन था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मेहराब न क़िंदील न असरार न तमसील

राजेन्द्र मनचंदा बानी

हम हैं मंज़र सियह आसमानों का है

राजेन्द्र मनचंदा बानी

दिल में ख़ुशबू सी उतर जाती है सीने में नूर सा ढल जाता है

राजेन्द्र मनचंदा बानी

आज तो रोने को जी हो जैसे

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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