अंतर Poetry
हासिल किसी से नक़्द-ए-हिमायत न कर सका
ग़ुलाम हुसैन साजिद
हवा ही लौ को घटाती वही बढ़ाती है
अमजद इस्लाम अमजद
हम-ज़ाद
फ़ैसल हाश्मी
बसाई मैं ने जो क़ल्ब-ए-हज़ीं में
ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
बसाई मैं ने जो क़ल्ब-ए-हज़ीं में
ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
हर एक लम्हा तिरी याद में बसर करना
ज़ुबैर अमरोहवी
तुलूअ'
ज़िया जालंधरी
कितने इम्काँ थे जो ख़्वाबों के सहारे देखे
ज़िया जालंधरी
ख़ून के दरिया बह जाते हैं ख़ैर और ख़ैर के बीच
ज़िया जालंधरी
शायर और मसख़रे
ज़ीशान साहिल
ख़ुद-कुशी
ज़ीशान साहिल
रास्ते में कहीं खोना ही तो है
ज़ेब ग़ौरी
गर्म लहू का सोना भी है सरसों की उजयाली में
ज़ेब ग़ौरी
इस दर पे मुझे यार मचलने नहीं देते
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
क्यूँ वो महबूब रू-ब-रू न रहे
ज़हीर अहमद ताज
ऐ शैख़ अपने अपने अक़ीदे का फ़र्क़ है
ज़हीर देहलवी
ऐ मेहरबाँ है गर यही सूरत निबाह की
ज़हीर देहलवी
खुल गईं आँखें कि जब दुनिया का सच हम पर खुला
ज़फ़र कलीम
रफ़्ता रफ़्ता लग चुके थे हम भी दीवारों के साथ
ज़फ़र इक़बाल
छुपा हुआ जो नुमूदार से निकल आया
ज़फ़र इक़बाल
क्यूँ मैं हाइल हो जाता हूँ अपनी ही तन्हाई में
ज़फ़र हमीदी
कोई पूछे मिरे महताब से मेरे सितारों से
यासमीन हमीद
तज़ाद अच्छा नहीं तर्ज़-ए-बयाँ का हम ज़बानों में
याक़ूब उस्मानी
साक़ी मैं देखता हूँ ज़मीं आसमाँ का फ़र्क़
यगाना चंगेज़ी
यकसाँ कभी किसी की न गुज़री ज़माने में
यगाना चंगेज़ी
ख़ुदाओं की ख़ुदाई हो चुकी बस
यगाना चंगेज़ी
बाक़ी रहा न फ़र्क़ ज़मीन आसमान में
वज़ीर अली सबा लखनवी
जो अदू-ए-बाग़ हो बरबाद हो
वज़ीर अली सबा लखनवी
बाज़ औक़ात फ़राग़त में इक ऐसा लम्हा आता है
वसीम ताशिफ़
क़तरे गिरे जो कुछ अरक़-ए-इंफ़िआ'ल के
वसीम ख़ैराबादी
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