फ़लक Poetry (page 9)
हज़ार रंग जलाल-ओ-जमाल के देखे
रूही कंजाही
साबुन
रियाज़ लतीफ़
ना-मुकम्मल तआरुफ़
रियाज़ लतीफ़
माज़रत
रियाज़ लतीफ़
बनारस
रियाज़ लतीफ़
ताख़ीर आ पड़ी जो बदन के ज़ुहूर में
रियाज़ लतीफ़
ले जाऊँ कहीं उन को बदन पार ही रक्खूँ
रियाज़ लतीफ़
जिस्मों की मेहराब में रहना पड़ता है
रियाज़ लतीफ़
हदों के न होने की ज़िल्लत से हारे हुए
रियाज़ लतीफ़
ग़ैबी दुनियाओं से तन्हा क्यूँ आता है
रियाज़ लतीफ़
न तारे अफ़्शाँ न कहकशाँ है नमूना हँसती हुई जबीं का
रियाज़ ख़ैराबादी
मेरे पहलू में हमेशा रही सूरत अच्छी
रियाज़ ख़ैराबादी
सातों फ़लक किए तह-ओ-बाला निकल गया
रिन्द लखनवी
हैं ये सारे जीते-जी के वास्ते
रिन्द लखनवी
दीद-ए-गुलज़ार-ए-जहाँ क्यूँ न करें सैर तो है
रिन्द लखनवी
नज्म-ए-सहर
रिफ़अत सरोश
हम फ़लक के आदमी थे साकिनान-ए-क़र्या-ए-महताब थे
रियाज़ मजीद
हसीन दुनिया उजड़ गई तो
रेहान अल्वी
सौ ईद अगर ज़माने में लाए फ़लक व-लेक
रज़ा अज़ीमाबादी
चाक दामन भी हुआ चाक-ए-गरेबाँ की तरह
रऊफ़ यासीन जलाली
ये मिरी रूह सियह रात में निकली है कहाँ
रउफ़ रज़ा
कुछ हद भी ऐ फ़लक सितम-ए-ना-रवा की है
रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी
लाख मुझे दोश पे सर चाहिए
राशिद मुफ़्ती
सफ़र से किस को मफ़र है लेकिन ये क्या कि बस रेग-ज़ार आएँ
राशिद जमाल फ़ारूक़ी
हम अजल के आने पर भी तिरा इंतिज़ार करते
रशीद लखनवी
झुलसती धूप में ठंडी हवा का झोंका भेज
रऊफ़ अमीर
हाथ उठाता है दुआओं को फ़लक भी उस दम
राजेश रेड्डी
कितनी आसानी से दुनिया की गिरह खोलता है
राजेश रेड्डी
फ़स्ल-ए-गुल में जो कोई शाख़-ए-सनोबर तोड़े
रजब अली बेग सुरूर
ख़ुद-कुशी
राजा मेहदी अली ख़ाँ
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